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कहानी- नज्म सुभाष

आज 14 साल बाद फिर से वही नाम उस की आंखों के सामने तैर गया. इन सालों में उस ने कितने संघर्ष किए, क्याक्या परेशानियां नहीं उठाईं... सब याद है उसे. किस तरह उस ने लोगों के घर काम कर के अपना जीवन काटा. यह तो अच्छा हुआ कि उसे निर्मलजी जैसे श्रेष्ठ साहित्यकार का आशीर्वाद प्राप्त हुआ. उन्हीं की प्रेरणा से उस ने एक किताब ‘स्त्रीवजूद’ लिखी जो पूरे भारत साहित अन्य देशों में भी अनुवादित हो कर हाथोंहाथ ली गई. उस ने अपना नाम बदल कर माधवी कर लिया. पुस्तकों से प्राप्त होने वाली धनराशि से उस ने एक घर खरीदा. अनाथाश्रम से उस ने एक बेटी को गोद लिया. उस की जिंदगी में हर तरफ खुशियां ही खुशियां थीं. लेकिन आज अतीत ने जख्मों को फिर से ताजा कर दिया.

‘नहीं ऐसा नहीं हो सकता... हो सकता है यह कोई दूसरा इनसान हो. आजकल तो एक नाम के कई लोग मिल जाते हैं,’ उस ने सोचा.

करीब 10 दिन बाद उस के पास निर्मलजी का फोन आया. उन्होंने उसे बताया कि साहित्यकार मंडल ने अरुण कुमार को पुरस्कार प्रदान करने के लिए तुम्हें चुना है. यह सुन कर वह अवाक रह गई. वह जिस तरह जाने से बचती है, लोग उसे उसी तरफ क्यों धकेल देते हैं... उस ने साफ मना कर दिया कि वह नहीं आ पाएगी. मगर निर्मलजी ने बताया कि यह बात लेखक को डाक द्वारा बताई जा चुकी है कि उसे पुरस्कार प्रदान करने के लिए तुम आ रही हो.

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