प्रकृति प्रेमियों ने उस गैंग का उपनाम हैवान गैंग दिया है. वैसे हकीकत में उस का नाम है, हरनाम गैंग. गैंग के मुखिया का नाम हरनाम है. जैसा नाम वैसा ही काम. धरती का मुंडन अर्थात गंजा करना. खुले शब्दों में कहें तो पेड़ों का सफाया करना.

हैवान गैंग को उन 1,111 पेड़ों को काटने का ठेका मिला, जो वानर बाग के नाम से पिछले 200 सालों से शहर में उसी तरह अपनी पहचान बनाए हुए है, जैसे 5 हजार सालों से वृंदावन में सेवाकुंज बनाए हुए है.

वानर बाग नाम इसलिए पड़ा क्योंकि वहां बंदरों का बसेरा नहीं, बल्कि राज है. इस बाग में बंदरों के कई झुंड रहते हैं, हर झुंड का मुखिया एक बंदर सरदार होता है, जो अपनी शक्ति के चलते यह पद हासिल करता है और मादा बंदरियों की संतान के पिता होने का अधिकार प्राप्त करता है. ये झुंड कभीकभी आपस में लड़तेझगड़ते हैं. तब वानर बाग की शांति खोंखों, चींचीं की गूंज से भंग हो जाती है.

उदारीकरण और भारत निर्माण के अभियानकर्ताओं की नजरों में वानर बाग खटकता रहा है. उन्होंने इस मिनी फारेस्ट को भव्य टेक्नोलौजी पार्क व मेमोरियल पार्क में परिणित करने की ठान ली. मेगा कारपोरेट घराने को क्षेत्र विकसित करने का ठेका दिया गया और उस ने जंगल उजाड़ने का उपठेका हैवान गैंग को दे दिया.

इस गैंग की खासियत है कि इस ने आपरेशन कत्ले आम में पेड़ के सब अवयवों को काटछांट कर अलग कर दिया. पत्तियों का पहाड़, नरम टहनियों का ढेर, मध्यम मोटी लकडि़यों की टाल, मोटे लट्ठों का ढेर यानी सब अलगअलग. पेड़ों का हर अंग बिकाऊ बन जाता है. फिर इस बाग में आम, अमरूद, पीपल, पाकड़, बेर, बरगद, जामुन, महुआ, नीम, बबूल, शीशम आदि पेड़ों की संख्या अधिक है, जो पर्यावरण के तो सब से ज्यादा संरक्षक हैं, लेकिन आर्थिक विकास में बाधा.

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