‘‘इहा, यह क्या किया तुम ने?’’
‘‘धरम, यह सिर्फ मैं ने किया है, तुम ऐसा कैसे कह सकते हो? क्या तुम इस में शामिल नहीं थे?’’
‘‘वह तो ठीक है, पर मैं ने कहा था न तुम्हें सावधानी बरतने को.’’
‘‘सच मानो धरम, मैं ने तो सावधानी बरती थी. फिर यह कैसे हुआ, मु झे भी आश्चर्य हो रहा है.’’
‘‘तुम कोई भी काम ठीक से नहीं कर सकती हो.’’
‘‘डौंट वरी. कोई न कोई हल तो निकल ही आएगा हमारी प्रौब्लम का.’’
‘‘हम दोनों को ही सोचविचार कर कोई रास्ता निकालना होगा.’’
इहा मार्टिन और धर्मदास दोनों उत्तरी केरल के एक केंद्रीय विश्वविद्यालय से बायोकैमिस्ट्री में मास्टर्स कर रहे थे. इहा धर्मदास को धरम कहा करती थी. वह कैथोलिक क्रिश्चियन थी जबकि धर्मदास उत्तर प्रदेश के साधारण ब्राह्मण परिवार से था. उस के पिता का देहांत हो गया था और उस की मां गांव में रहती थी. पिता वहीं स्कूल मास्टर थे. धरम के पिता कुछ खेत छोड़ गए थे. गांव में उन की काफी इज्जत थी. उस गांव में ज्यादातर लोग ब्राह्मण ही थे, पिता की पैंशन और खेत की आय से मांबेटे का गुजारा अच्छे से हो जाता था.
करीब एक साल पहले ही इहा और धरम में दोस्ती हुई थी. धरम बीमार पड़ा था और अस्पताल में भरती था. इहा की मां नर्स थीं और पिता कुवैत में किसी कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करते थे. इहा की मां ने अस्पताल में धरम का विशेष खयाल रखा और अच्छी तरह देखभाल की थी. इसी दौरान दोनों दोस्त बने और यह दोस्ती कुछ ही दिनों में प्यार में बदल गई.