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‘‘मुझे आप के साथ कहीं नहीं जाना. कह दीजिएगा मां से कि अब यहीं जीनामरना है, बस…’’
‘‘कैसी पागलों जैसी बातें कर रही हो. अजय जैसा अच्छा इंसान तुम्हारा पति है. जैसा चाहती हो वैसा ही करता है, और क्या चाहिए तुम्हें?’’
मैं कमरे से बाहर चला गया. आगे कुछ भी सुनने की शक्ति मुझ में नहीं थी. कुछ भी सुनना नहीं चाहा मैं ने. क्या सोच कर विनय को बुलाया था पर उस के आ जाने से तो सारा विश्वास ही डगमगा सा गया. तंद्रा टूटी तो पता चला काफी समय बीत चुका है. शायद दोपहर होने को आ गई थी. विनय वापस जाने को तैयार था. बोला, ‘‘मीना को साथ ले जा रहा हूं. तुम अपना खयाल रखना.’’
मीना बिना मुझ से कोई बात किए ही चली गई. नाश्ता उसी तरह मेज पर रखा रहा. मीना ने मेरी भूख के बारे में भी नहीं सोचा. भूखा रहना तो मेरी तब से मजबूरी है जब से उस के साथ बंधा हूं. कभीकभी तरस भी आता है मीना पर.
मीना चली गई तो ऐसा लगा जैसे चैन आ गया है मुझे. अपनी सोच पर अफसोस भी हो रहा है कि मैं मीना को बहुत चाहता हूं. फिर उस का जाना प्रिय क्यों लग रहा है? ऐसा क्यों लग रहा है कि शरीर के किसी हिस्से में समाया मवाद बह गया और पीड़ा से मुक्ति मिल गई? जिस के साथ पूरी उम्र गुजारने की सोची उसी का चला जाना वेदना क्यों नहीं दे रहा मुझे?
एक शाम मैं ने विनय को समझाना चाहा, ‘‘मेरी वजह से तुम क्यों अपने परिवार से दूर रह रहे हो, विनय? चारु भाभी को बुरा लगेगा.’’
‘‘तुम्हारी भाभी ने ही तो कहा है कि मैं तुम्हारे साथ रहूं और फिर तुम मेरा परिवार नहीं हो क्या? हैरान हूं मैं अजय, मीना का व्यवहार देख कर. वह सच में बहुत जिद्दी है. मैं भी पहली बार महसूस कर रहा हूं… तुम बहुत सहनशील हो अजय, जो उसे सहते रहे. तुम्हारी जगह यदि मैं होता तो शायद इतना लंबा इंतजार न करता.
‘‘अजय, सच तो यह है कि अपनी बहन का बचपना देख कर मुझे अपनी पत्नी और भी अच्छी लगने लगी है. दोनों में जब अंतर करता हूं तो पाता हूं कि चारु समझदार और सुघड़ पत्नी है. मीना जैसी को तो मैं भी सह नहीं पाता.
‘‘अकसर ऐसा होता है अजय, मनुष्य उस वस्तु से कभी संतुष्ट नहीं होता, जो उस के पास होती है. दूसरे की झोली में पड़ा फल सदा ज्यादा मीठा लगता है. चारु की तुलना मैं सदा मीना से करता रहा हूं, मां ने भी अपनी बहू का अपमान करने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी. चारु मीना जितना पढ़लिख नहीं पाई, क्योंकि शादी के बाद हम उसे क्यों पढ़ातेलिखाते? बी.ए. पास है, बस, ठीक है. मीना को तुम ने मौका दिया तो हम ने झट उसे चारु से बेहतर मान भी लिया पर यह कभी नहीं सोचा कि मीना की इच्छा का मान रखने के लिए तुम कबकब, कैसेकैसे स्वयं को मारते रहे.’’
‘‘चारु भाभी की अवहेलना मैं ने भी अकसर महसूस की है. मीना के जाने से मेरा भी भला हो रहा है और चारु भाभी का भी. मैं भी चैन की सांस ले रहा हूं और चारु भाभी भी.
‘‘कैसी है मीना, तुम ने बताया नहीं? क्या घर वापस नहीं आना चाहती? क्या मेरी जरा सी भी याद नहीं आती उसे?’’
‘‘पता नहीं, मुझ से तो बात भी नहीं करती. च रु से भी कटीकटी सी रहती है.’’
‘‘किसी के साथ खुश भी है वह? तुम बुरा मत मानना, विनय. कहीं ऐसा तो नहीं कि उस के जीवन में कोई और है या था… कहीं उस की शादी जबरदस्ती तो नहीं की गई?’’ मैं ने सहसा पूछा तो विनय के माथे पर कुछ बल पड़ गए.
‘‘मैं ने मां से भी इस बारे में पूछा था. तुम मेरे मित्र भी हो, अजय, तुम्हारे साथ जरा सी भी नाइंसाफी मैं नहीं सह सकता, क्योंकि पिछले 6-7 सालों से मैं तुम्हें जानता हूं कि तुम्हारा चरित्र सफेद कागज के समान है. कोई तुम्हारी भावना का अनादर क्यों करे? मेरी बहन भी क्यों? जहां तक मां का विचार है तो वे यही कहती हैं कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है.’’
‘‘तो आज मैं आ जाऊं उसे वापस ले आने के लिए? आखिर कोई कुछ तो इस समस्या का समाधान होना ही चाहिए. मीना मेरी पत्नी है, कुछ तो मुझे भी करना होगा न.’’
विनय की आंखें भर आईं. उस ने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया. संभवतयाउसे भी यही एक रास्ता सूझ रहा होगा कि मैं ही कुछ करूं.
अगली सुबह मैं अपनी ससुराल पहुंच गया. पूरे 15 दिन बाद मैं मीना से मिलने वाला था. सड़क की मरम्मत का काम चल रहा था. पूरे रास्ते पर कंकर बिछे थे, इसलिए स्कूटर घर से बहुत दूर खड़ा करना पड़ा. पैदल ही घर तक आया, इसीलिए मेरे आने का किसी को भी पता नहीं चला.
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मैं घर के आंगन में खड़ा था. मां और भाभी दोनों रसोई में व्यस्त थीं. उन्होंने मुझे देखा नहीं. चुपचाप सीढि़यां चढ़ कर मैं ऊपर मीना के कमरे के पास पहुंचा और पति के अधिकार के साथ दरवाजा धकेला मैं ने.
‘‘चारु, तुम जाओ. मैं ने कहा न मुझे भूख नहीं है… जानती हूं तुम्हारी चापलूसी को, सभी को मेरे खिलाफ भड़काती हो… अनपढ़, गंवार कहीं की… तुम जलती हो मुझ से.’’
मीना की यह भाषा सुन कर मैं हक्काबक्का रह गया. आहट पर ही इतनी बकवास कर रही है तो आमनेसामने झगड़ा करने में उसे कितनी देर लगती होगी. कैसी औरत मेरे पल्ले पड़ गई है जिस का एक भी आचरण मेरे गले से नीचे नहीं उतरता.
‘‘चारु भाभी क्यों जलेगी तुम से? ऐसा क्या है तुम्हारे पास, जरा बताओ तो मुझे? तुम तो मानसिक रूप से कंगाल हो.’’
काटो तो खून नहीं रहा मीना में. मेरा स्वर और मेरी उपस्थिति की तो उस ने कल्पना भी न की होगी. अफसोस हुआ मुझे खुद पर और सहसा अपना आक्रोश न रोक पाने पर.
‘‘चारु भाभी के अच्छे व्यवहार जैसा कुछ है तुम्हारे पास? तुम तो न अपने मांबाप की सगी हो न भाईभाभी की. न ससुराल में तुम्हें कोई पसंद करता है न मायके में. यहां तक कि पति भी तुम से खुश नहीं है. ऐसा कौन है तुम्हारा, जो तुम से प्यार कर के खुद को धन्य मानता है?’’
सन्न रह गई मीना. शायद यह आईना उसे मैं ही दिखा सकता था. आंखें फाड़फाड़ कर वह मुझे देखने लगी.
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