एक पुराना प्रचलित चुटकुला है जिसे अकसर लोग आपस में कहते सुनते रहते हैं : 2 गधे चरागाह में चर रहे थे. चरतेचरते 1 गधे ने दूसरे को एक चुटकुला सुनाया, पर दूसरा गधा चुटकुला सुन कर भी शांत रहा, उस ने कोई प्रतिक्रिया नहीं जाहिर की. तब चुटकुला सुनाने वाले गधे को झेंपने के अलावा कोई चारा नहीं रहा और सांझ होने पर दोनों गधे अपनेअपने निवास को चले गए. अगले दिन दोनों गधे चरने के लिए फिर उसी चरागाह में आए तो चुटकुला सुनने वाला गधा बहुत जोर से हंसने लगा. उसे इस तरह हंसता देख कर दूसरे गधे ने हंसने का कारण जानना चाहा, तो उत्तर मिला कि कल जो चुटकुला उस ने सुना था, उसी पर हंस रहा है.
पहले गधे ने आश्चर्य से कहा कि चुटकुला तो कल सुनाया था, आज क्यों हंस रहे हो. इस पर दूसरे गधे से उत्तर मिला कि उस का अर्थ आज समझ में आया है. अब हंसने की बारी चुटकुला सुनाने वाले की थी. उस ने जोर का ठहाका लगाते हुए कहा, ‘‘वाह, चुटकुला कल सुना था, हंस अब रहे हो. वास्तव में तुम रहोगे गधे के गधे ही. कल की बात आज समझ में आई है.’’
मेरे विचार से यह कथा मात्र एक चुटकुला नहीं है. इस में तो गहन रहस्य और ज्ञान छिपा है. वास्तविकता यह है कि बहुत सारी बातें ऐसी होती हैं जिन का अर्थ तब समझ में नहीं आता जब कही जाती हैं. बहुत सी घटनाओं का अर्थ घटना के घटित होते समय जाहिर नहीं होता. बहुत सी बातों का अर्थ बाद में समझ में आता है. कभीकभी तो ऐसी बातों एवं घटनाओं का अर्थ समझने में वर्षों का वक्त लग जाता है. पर किसी भी बात के अर्थ को समझने में व्यक्ति विशेष की बुद्धि का भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान होता है. यदि व्यक्ति बुद्धिमान है तो बात का अर्थ समझने में विलंब नहीं होता, परंतु यदि व्यक्ति की बुद्धि कुछ मंद है तो अर्थ समझने में देर होती ही है. अल्पबुद्धि होने के कारण ही शायद यह चुटकुला गधों के बारे में प्रचलित है. बचपन में घटित एक घटना को समझने में मुझे भी वर्षों का समय लग गया था. शायद बालमन में तब इतनी समझ नहीं थी कि इस बात का अर्थ पल्ले पड़ सके या गधों की तरह बुद्धि अल्प होने के कारण अर्थ समझ में नहीं आया था. जो भी कहें पर यह घटना लगभग 40 साल पुरानी है.