‘‘ठीक है, तो फिर जल्दी से दिल्ली की फ्लाइट बुक करा लेता हूं, फिर दिल्ली से टैक्सी ले कर धौलपुर चले चलेंगे.’’
फ्लाइट बुक होतेहोते और धौलपुर तक पहुंचने में 3 दिनों का वक्त लग गया. पहुंचने पर पता चला कि पद्मजा के पति की 2 घंटे पहले ब्रेन हेमरेज होने से मृत्यु हो चुकी है. सारे घर में मातम छाया हुआ था. पद्मजा का रोरो कर बुरा हाल था. उस की मुसकराहट से तर रहने वाले गुलाबी होंठ सूख कर चटख रहे थे. उस की इस हालत को देख कर मुझे विश्वास ही न होता था कि यह मेरी वही प्यारी सी ननद है जो सिर्फ 8 महीने पहले मेरी बरात में नाचती, गाती, हंसती, मुसकराती, गहनों से लदी हुई आई थी.
सचिन चाह कर भी धौलपुर में ज्यादा समय न रुक पाए. तेरहवीं के तीसरे दिन ही उन्हें मुंबई लौटना पड़ा. तेरहवीं के कुछ दिनों बाद ससुरजी पद्मजा को उस की ससुराल से ले आए थे. मैं ने उस के साथ रहना ही ठीक समझा, सोचा कि जब महीनेदोमहीने में परिवार पर आए हुए दुख के बादल थोड़े छंट जाएंगे तब मैं मुंबई लौट जाऊंगी. अभी पद्मजा को मेरे साथ की बहुत जरूरत थी. अगर वह कभी गलती से मुसकराती थी तो मेरे साथ, खाना खाती तो मेरे साथ और मेरे आग्रह करने पर.
इन हालात को देख कर परिवार के सभी बड़ों ने फैसला किया कि पद्मजा को भी मेरे साथ मुंबई भेज दिया जाए. इसी में उस की भलाई भी थी. मुंबई वापस आ कर मैं ने जैसेतैसे उसे एमबीए करने के लिए राजी कर लिया. दुखों के भार को दूर रखने का सब से सही तरीका होता है खुद को इतना व्यस्त करो कि दुखों को क्या, खुद को ही भूल जाओ.