समाज, जाति हम इंसान ने ही तो बनाए हैं. इस में फंस कर हम अपनी असली खुशी कैसे भूल सकते हैं. ओनीर की खुशी सिर्फ सहर थी. सहर नहीं मिली तो सब बेमानी था उस के लिए. लेकिन सहर और उस का मिलन आसान था क्या?