गुलमोहर और अमलतास के पेड़ों की अनवरत कतारों के बीच चिकनी काली, चमकीली सड़क दूर तक दिखाई देती है. जगहजगह सड़क के किनारे लैंपपोस्ट लगे थे. उसे इन की पीली रोशनी हमेशा से रहस्यमयी लगती रही है. सड़क की दोनों ओर पैदल चलने वालों के लिए चौड़ी पटरी बनी है. कैंट की इस सड़क से पिछले कई वर्षों से उस का सुबहशाम का वास्ता है.
पिछले 8 वर्षों में यही नौकरी है, जो मुसल्सल 2 सालों से चल रही है वरना कहीं
8-9 महीने तो कहीं सवा साल. बस फिर किसी न किसी वजह से या तो नौकरी उसे बायबाय कह देती या फिर वह खुद नौकरी से विदा ले लेती.
न जाने क्यों इन गुलमोहर के पेड़ों नीचे से गुजरते समय उस के अंदर कुछ पिघलने सा लगता है. अब ही नहीं वर्षों पहले भी ऐसा ही होता था. जब वसंत उस की जिंदगी में आया तो ढेरों फूल खिल गए थे उस के आंचल में, वजूद महकने लगा था.
‘‘तुम्हें पता है, मुझे वसंत पसंद है,’’ वह खोईखोई सी कहती.
‘‘अच्छा,’’ वसंत उसे शरारती नजरों से देखता तो वह शर्म से लाल हो जाती.
‘‘मैं, मौसम की बात कर रही हूं.’’
‘‘मैं भी,’’ वही शरारत और गालों के भंवर, जिस में उस ने खुद को खो सा दिया था.
कंपनी पार्क के आगे लगी बड़ी सी घड़ी ने 6 बजने की सूचना दी तो वह वर्तमान में लौट आई. कदम कुछ तेजी से आगे बढ़ने लगे.
घर पहुंची तो देखा शुभी होमवर्क करने में व्यस्त थी.
‘‘मेरी बच्ची खूब मन लगा कर पढ़ो,’’ उस ने प्यार से शुभी के सिर पर हाथ फेरा और फिर बैग सोफे पर रख कर सीधा रसोई में चली आई. उसे घर पहुंचते ही चाय चाहिए. चाय की बड़ी तलब है उसे, पर जिस से यह आदत लगी, उस के साथ बैठ कर सुकून से चाय पीए हुए मुद्दत हो गई.