इसी बीच जोया ने बेटी को जन्म दिया. सब खुश हुए पर हसन से किसी ने कोई बात नहीं की. शौकत, सना और हिबा ने रूबी की बात जानने के बाद हसन से बात बिलकुल बंद कर दी थी. आयशा उस से थोड़ी बहुत बात कर लेती थीं. उस के खाने, कपड़े की देखभाल वही कर रही थीं.
एक दिन सना ने फोन पर हिबा से कहा, ‘‘मैं ऐसे भाई की कोई मदद नहीं करूंगी, मैं उस से अपना पूरा पैसा वापस मांगूंगी. बहन की आबरू से खिलवाड़ करने वाले भाई से मेरा कोई मतलब नहीं है.’’
हिबा ने कहा, ‘‘आप ठीक कह रही हैं. नफरत हो गई है हसन से, इस ने हम बहनों को हमेशा ही बुरी नजर से देखा है, जोया जैसी सुघड़ बीवी है, सब ने हमेशा उस की हर बात मानी है, मैं भी मांग लूंगी अपने गहने वापस... मुझे भी नहीं करनी उस की मदद... जोया को भी नहीं बता पाएंगे उस की करतूत, बेचारी को धक्का लगेगा.’’
‘‘कल ही हसन से बात करने चलते हैं.’’
‘‘ठीक है.’’
सना रशीद को और हिबा अपनी ननदों को बच्चों का ध्यान रखने के लिए कह कर मायके पहुंचीं. उन्होंने आयशा से हसन के बारे में पहले ही पूछ लिया था. वह घर पर ही था. 4 बज रहे थे. वह सो रहा था. उन की आवाज से हसन की नींद खुल गई. उस ने नीचे से आ रही आवाजों पर ध्यान दिया. समझ गया कुछ बात होने वाली है. सना ने जोर से हसन को आवाज दी, तो वह नीचे आ कर अक्खड़ लहजे में बोला, ‘‘क्या है, बाजी?’’