एक दिन अचानक अंतरिक्ष विज्ञान मामलों के प्रभारी मंत्री ने वैज्ञानिकों की आपातकालीन मीटिंग बुलाई. हमारे मंत्री चाहे कितने भी काहिल हों मगर इतने भी गिरे हुए नहीं हैं कि आपातकाल हो और वे मीटिंग बुलाने का कष्ट न करें. बैठक में वे सभी वैज्ञानिक, जिन्हें अभी तक भारत सरकार किसी तरह विदेश भागने से रोकने में सफल रही थी, उपस्थित हुए. मंत्रीजी ने बगैर भूमिका बांधे भाषण शुरू किया, ‘‘प्यारे वैज्ञानिक भाइयो, जैसा कि आप सभी जानते हैं कि पिछले दिनों अमेरिका ने अपना पाथफाइंडर मंगल ग्रह पर उतार दिया. मैं पूछता हूं कि हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते? आखिर आप लोग कब तक बाहर की चीजों पर ‘मेड इन इंडिया’ लिखलिख कर काम चलाते रहेंगे?’’
एक वैज्ञानिक ने दबी आवाज में कहा, ‘‘सर, अमेरिका विज्ञान में हम से 50 वर्ष आगे है.’’
मंत्रीजी बिगड़े, ‘‘वही तो हम आप से पूछते हैं कि क्यों? हम भी 10+2 हैं और यों ही तो मंत्री नहीं बन गए. हम भी 8वीं से 12वीं क्लास तक हर साल ‘विज्ञान के चमत्कार’ पर निबंध लिखते रहे हैं. हम तो कहते हैं कि बेशक अमेरिका विज्ञान में हम से 50 साल आगे है मगर चमत्कारों में 100 साल पीछे है. विज्ञान तो बाद में आया, चमत्कार तो ऋषिमुनियों के समय से ही होते आए हैं. यह तो हम ने मेहरबानी कर के विज्ञान को अपने यहां घुसने दिया वरना हम क्या विज्ञान के मोहताज हैं?
‘‘त्रेता युग में वानरों ने पत्थरों पर ‘राम’ लिख कर उन्हें समंदर में तैरा दिया, उसी युग में अपना रावण बिना डीजल, पैट्रोल रहित पुष्पक विमान उड़ाता था. कहां थे तब विज्ञान के नियमकानून? क्या समंदर में डूब कर मर गए थे? इस का कोई जवाब अमेरिका के पास है? और आज वह अपना एक रौकेट मंगल पर उतार कर शेखी बघारता है. अरे, वह तो इस कुरसी को हमारी सख्त जरूरत थी वरना हम क्या कम वैज्ञानिक हैं. हम चाहें तो थर्मामीटर की मदद से कुतुबमीनार की ऊंचाई नाप सकते हैं. बोलिए, आप लोग कर सकते हैं ऐसा?’’
सभाकक्ष में सन्नाटा छा गया. बेचारे वैज्ञानिक हकलाने लगे, ‘‘सर, थर्मामीटर से तो तापमान नापते हैं, भला ऊंचाई कैसे…’’
‘‘वैरी सिंपल,’’ मंत्रीजी हंसे, ‘‘एक लंबी रस्सी और थर्मामीटर ले कर कुतुबमीनार पर चढ़ जाओ, रस्सी के एक सिरे पर थर्मामीटर बांध कर, रस्सी को धीरेधीरे नीचे छोड़ते जाओ. जब थर्मामीटर जमीन को छूने लगे, रस्सी को नाप लो. आ गई कुतुबमीनार की ऊंचाई, आखिर हम यों ही तो मंत्री नहीं बन गए हैं,’’ मंत्रीजी का चेहरा दमक रहा था. वैज्ञानिकों ने एक ठंडी आह भरी. मंत्रीजी आगे बढ़े, ‘‘हम सोचते हैं, आप लोग भी एक पाथफाइंडर (स्पेस शटल) बनाएं और उसे बृहस्पति ग्रह पर उतार कर बता दें कि हम भी किसी से कम नहीं हैं.’’
‘‘यह काम इतना आसान नहीं है सर,’’ सभी वैज्ञानिकों ने एक स्वर में कहा.
‘‘अरे, आप लोग घबराते क्यों हैं? आप लोगोें को जो मदद चाहिए हम देंगे. फिर हम आप सब को एक चमत्कारी तांत्रिक अंगूठी मंगा कर देंगे, जो प्रेतबाधा और ग्रहों के बुरे असर को दूर कर कार्य सिद्ध करती है और एकसाथ 10 अंगूठियां मंगवाने पर डाकखर्च भी नहीं लगता. एक बार पाथफाइंडर का रौकेट बनने की देर है फिर तो उस को बृहस्पति पर पहुंचाना भर है. फोटो तो वह अपनेआप खींचेगा, आप लोग बस, कैमरे में फिल्म डालना मत भूलना,’’ मंत्रीजी बोले.
सभी वैज्ञानिकों ने मरता क्या न करता के अंदाज में हामी भर दी. बाहर आ कर उन्होंने मंत्रीजी के पी.ए. को पकड़ा, ‘‘क्या बात है भई? यह अचानक मंत्रीजी को क्या धुन सवार हो गई?’’ पी.ए.ने दाएंबाएं देखा और फिर दबी आवाज में कहा, ‘‘दरअसल, बात यह है कि कल अमेरिका के एक मंत्री ने हमारे मंत्रीजी को बेइज्जत करने के इरादे से फोन किया और पूछा, ‘अंतरिक्ष विज्ञान विभाग देख रहे हो, यह तो बताओ कि रौकेट इतनी तेज क्यों भागता है?’ हमारे मंत्रीजी भी आखिर यों ही तो मंत्री नहीं बन गए हैं, तपाक से बोले, ‘अबे, देखता नहीं क्या कि रौकेट के पिछवाड़े में कैसी आग लगी होती है? तुम्हारे पिछवाड़े में आग लगवा दें तो तुम उस से भी तेज भागोगे.’ अमेरिकी मंत्री की बोलती बंद हो गई, मगर हमारे मंत्रीजी के दिल की आग ठंडी नहीं हुई, इसलिए इतना तामझाम कर रहे हैं.’’
वैज्ञानिक बोले, ‘‘तो यह बात है. मंत्रीजी की व्यक्तिगत इज्जत का मामला है इसलिए वे इतना छटपटा रहे हैं. देश की इज्जत की बात होती तो यह सब बखेड़ा होता ही नहीं.’’ खैर, जापान से तकनीक, अमेरिका से कलपुर्जे और रूस से मदद मांग कर पाथफाइंडर (स्पेस शटल) न सिर्फ तैयार हो गया बल्कि उस के रवाना होने का दिन भी आ पहुंचा. मंत्रीजी खुशीखुशी फीता काटने पहुंच गए. मंत्रियों को तो वैसे भी खुजली होती है जहां फीता देखा, कैंची ले कर दौड़ पड़े.
उलटी गिनती शुरू हुई और खत्म भी हो गई मगर यान अपनी जगह से हिला तक नहीं. वैज्ञानिकों ने घबरा कर ‘यान’ का एकएक सिस्टम पुन: चैक किया और फिर कोशिश की, मगर वह अपनी जगह से टस से मस न हुआ. वैज्ञानिकों को पसीना आने लगा. एकाएक मंत्रीजी ‘‘हम ट्राई करते हैं,’’ कह कर आगे बढ़े और ‘यान’ को पकड़ कर स्कूटर की तरह एक ओर झुकाया, थोड़ी देर बाद सीधा कर के बोले, ‘‘अब स्टार्ट करो.’’
उपस्थित जनों की आंखें फटी की फटी रह गईं, पाथफाइंडर (स्पेस शटल) चल पड़ा. सभी लोग अवाक् हो मंत्रीजी का चेहरा देखने लगे. मंत्रीजी हंसे, ‘‘अरे भई, हमारी इंडियन कंपनी के स्कूटर ऐसे ही तो हैं, झुका कर चालू होते हैं.’’
वैज्ञानिकों ने लंबी सांस खींची. पाथफाइंडर की रवानगी की खबर राष्ट्रपति के बधाई संदेश के साथ देश भर के अखबारों में छपी. बहुत जल्द यान के किसी ग्रह पर उतरने के संकेत मिलने लगे. ‘‘लगता है हमारा यान कुछ ज्यादा ही जल्दी बृहस्पति पर पहुंच गया है, सर,’’ वैज्ञानिकों ने चिंतित हो कर मंत्रीजी को सूचित किया.
‘‘इस में चिंता की क्या बात है भई, आखिर वह रौकेट है कोई पैसेंजर ट्रेन तो नहीं, जो हर स्टेशन पर खड़ा हो जाए. टौप गियर में जाएगा वह तो,’’ मंत्रीजी ने आश्वस्त किया.
कुछ दिन बाद जब शटल से तसवीरें आनी शुरू हुईं तो वैज्ञानिक उन्हें देख कर हैरान रह गए. तसवीरों में पहाड़, नदी, नाले, हरियाली सभी कुछ पृथ्वी की तरह. बृहस्पति पृथ्वी से एकदम मिलताजुलता ग्रह निकला. यह सनसनीखेज खबर जंगल में लगी आग की तरह फैली. पंडितों और ज्योतिषियों ने फौरन पुरानी पोथियों का हवाला देते हुए घोषणा की कि हमारे पूर्वजों ने हजारों साल पहले ही बता दिया था कि बृहस्पति ग्रह, पृथ्वी के दूर के रिश्ते में है. संभवत: वह पृथ्वी के बड़े चाचा के लड़के का भतीजा है. लेकिन जब तसवीरोें में मकान, आदमी, औरतें भी दिखाई देने लगे तो एक युवा वैज्ञानिक उत्तेजित हो कर चिल्लाया, ‘‘मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे मैं अपने गांव
तब एक बुजुर्ग वैज्ञानिक ने ठंडी सांस ली, ‘‘यह बात एकदम ठीक है मेरे बच्चे कि तुम अपने गांव की ही तसवीरें देख रहे हो. असल में हमारा यान वापस पृथ्वी पर उतर गया है और यहीं के फोटो खींच रहा है. मैं पहले ही कहता था हमें इतना धन और समय बरबाद करने की क्या जरूरत है, जबकि सभी ग्रहों के बारे में दूसरे देशों से हमें घर बैठे ही जानकारी मिल जाती है. नकल मारने वाला प्रथम श्रेणी भले ही न ला पाए, पास तो हो ही जाता है.’’
अमेरिकी मंत्री ने भारतीय मंत्रीजी को फोन लगाया और व्यंग्यपूर्वक बोला, ‘‘क्या हुआ जनाब? लौट के बुद्धू घर को आए.’’
मंत्रीजी इत्मीनान से बोले, ‘‘आप ने समझा क्या है हमारे अंतरिक्ष यानों को? वे अमेरिकी यानों की तरह एहसानफरामोश नहीं हैं, जिस मिट्टी में पैदा हुए हैं, पलेबढ़े हैं उस को छोड़ कर ऐसे भाग जाते हैं कि लौट कर ही नहीं आते. स्वार्थी, देशद्रोही. हमारे यान तो देशभक्त हैं, अपनी जमीन को छोड़ कर जाने का मन ही नहीं होता. बेचारे लौटलौट कर आ जाते हैं.’’ अमेरिकी मंत्री की बोलती बंद हो गई. मंत्रीजी ने ठहाका लगाया और उस स्थान पर ताव दिया जहां पर मूंछें होनी चाहिए थीं. गर्व से अपनी छाती ठोकी, ‘‘आखिर हम यों ही तो मंत्री नहीं बन गए हैं.’’