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लेखक- स्मिता टोके
सुमन ने स्वेच्छा से नन्हे विनय की देखभाल का जिम्मा खुद पर ले लिया था. पत्नी की इस तरह मौत से रमेश बिलकुल जड़ हो गए. चिड़चिड़े, तुनकमिजाज और छोटीछोटी बातों पर बिफरने वाले. घर के बड़े लोगों ने सोचा कि यदि रमेश की शादी कर दी जाए तो शायद वह फिर सामान्य जीवन बिता सके.. और उन्हें इस के लिए सुमन से बेहतर विकल्प नहीं दिख रहा था. बड़ों के प्रश्न के जवाब में वह ना नहीं कह सकी और ब्याह कर इस घर में आ गई, जो कभी उस की दीदी का घर था.
मुखर दीपिका को शांत सुमन में खोजने की रमेश की कोशिश निष्फल रही. धीरेधीरे घर में उन का व्यवहार सिर्फ खाना खाने, कर्तव्यपूर्ति के लिए धन और सामान जुटाने व आराम करने के लिए ही शेष रह गया था.
सुमन के प्रति रमेश का कटु व्यवहार कभीकभी उस में भी अपराधभाव जगाता, लेकिन जल्द ही वह उस से फारिग भी हो जाता. हां, रमेश के इस आचरण से सुमन जरूर दिन ब दिन उन से दूर होती चली जा रही थी. रमेश के उखड़े व्यवहार के बावजूद सुमन विनय की बाललीलाओं और बाबूजी के स्नेह के सहारे अपने नवनिर्मित घरौंदे को बचाने की कोशिश करती रहती.
उस दिन सुमन की उम्मीद के विपरीत रमेश सही वक्त पर घर पहुंच गए. उस की सखियां चुहल करने लगीं कि तू तो कह रही थी कि जीजाजी नहीं आएंगे.
रमेश बड़ी देर तक सुमन की सभी सहेलियों से बातचीत करते रहे. बड़े खुशनुमा माहौल में उस की सखियों ने सब से विदा ली. जातेजाते वे बोलीं, ‘‘जीजाजी, सुमन को ले कर घर जरूर आइएगा.’’