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मैंशिखा एक 29 वर्षीय महिला हूं. जिंदगी को खुल कर जीना चाहती हूं. लोग कहते हैं मैं दिखने में आकर्षक हूं. पर क्या यह सच है? क्या सुमित का हद से ज्यादा महत्त्वाकांक्षी होना मेरा दम घोंट रहा है.

सुमित नाश्ता कर रहा था कि अचानक फोन की घंटी बजी. पता नहीं फोन किस का था पर सुमित के चेहरे पर बहुत ही प्यारी सी मुसकान नजर आ रही थी, वही मुसकान जिस के लिए मैं यानी शिखा पिछले कुछ सालों से तरस गई हूं.

मैं ने सुमित से पूछा किस का फोन था, तो वह बेपरवाही से बोला, ‘‘यार, किसी पुराने दोस्त का, पर तुम इतनी उत्सुक क्यों हो रही हो?’’

मैं ने बात को आगे बढ़ाए बिना खाने की मेज समेट ली. मैं और सुमित पिछले साल ही रोहतक से फरीदाबाद शिफ्ट हुए. अन्वी के होने के बाद मेरे और उस के बीच की दूरियां बढ़ती जा रही थीं. कुछ उस का बिजनैस में नुकसान तो कुछ हमारे ऊपर बढ़ती हुई जिम्मेदारियों ने जहां मेरी जीभ को कैंची की तरह धारदार कर दिया था, वहीं उसे बहुत ही रूखा कर दिया था.

वह जब भी मेरे करीब आने की कोशिश करता मेरी जबान न चाहते हुए भी बिना रुके चलने लगती. धीरेधीरे हमारे बीच के संबंध साप्ताहिक न हो कर मासिक हो गए. मुझे समझ नहीं आ रहा था जो सुमित मेरा 2 दिनों के लिए मायके जाना बरदाश्त नहीं कर पाता था वह अब कैसे कई दिनों तक मेरे बगैर रह लेता है?

मेरी जेठानी उषा को जब इस बारे में पता चला तो उन्होंने ही पहल कर के हमें रोहतक से फरीदाबाद भेज दिया था. फरीदाबाद में हम एकदूसरे से और भी ज्यादा दूर हो गए. घर के साथसाथ अन्वी की जिम्मेदारी भी अब मेरी थी. उसे स्कूल पहुंचाना और फिर वापस लाना व घर का सारा काम. थक कर चूर हो जाती थी. न तो नए शहर की हवा में अपनापन था और न ही शहर के लोगों में.

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