पिछला भाग- लकीरें-शिखा का नजरिया
मैं भावना एक 32 वर्षीय महिला हूं.जिंदगी को अपने ही ढंग से जीती हूं. अपने पैरों पर खड़ी हूं और किसी के ऊपर आश्रित नहीं हूं. पहननेओढ़ने का बहुत शौक है और दोस्ती निभाने का भी, पर इस का यह मतलब नहीं कि मेरा पति गौरव मुझे मर्यादाओं की लकीरों में बांध कर रखे. आज सुमित का फोन नहीं आया तो सोचा फोन कर के पूछ लूं क्या बात है. फोन उस की पत्नी शिखा ने उठाया और बेहद बदतमीजी से बात की. सुमित सही बोलता है कि उस की पत्नी बहुत बदतमीज है. पता नहीं मुझ से ऐसे क्यों बात कर रही थी कि जैसे मैं सुमित की प्रेमिका हूं. बेवकूफ औरत दोस्त और प्रेमिका का फर्क भी नहीं समझती.
मैं और सुमित ऐसा क्या गलत करते हैं? हम दोनों तो बस वही बातें करते हैं जो अपने पति या पत्नी से नहीं कर पाते. आज तक हम ने अपनी मर्यादा भंग नहीं की.
अभी उसी रोज की ही तो बात है. मेरे जन्मदिन पर सुमित मेरे लिए हीरे का ब्रैसलैट लाया था. मैं ने कितना मना किया पर वह नहीं माना. उस ने कहा, ‘‘भावना, तुम्हारी दौड़धूप से ही मुझे वह प्रोजेक्ट मिला है.’’
आखिरकार मुझे लेना ही पड़ा. मेरे मन में कोई खोट नहीं है.
एक बार तो मैं ने सुमित को खाने पर बुलाया था जब वह और भावना नएनए फरीदाबाद शिफ्ट हुए थे. पर मेरे पति गौरव का मुंह सूजा ही रहा. गौरव हर किसी से कितना हंसताबोलता है पर न जाने क्यों सुमित से खिंचाखिंचा ही रहता है.