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आजाद हूं मैं, आजाद हैं मेरे ख्वाब, खुश रहने में कोई खराबी तो नहीं, जिंदगी जीने का कोई तयशुदा मार्ग तो नहीं.
कैसा लगता है आप को जब रातदिन मेहनत कर के भी कुछ न कर पाओ. मैं किसी के साथ अपनी तुलना नहीं करता पर यह समाज, क्या यह भी ऐसा ही सोचता है? महिला की मरजी होती है कि वह विवाह के बाद नौकरी करे या नहीं. मुझे भी शिखा के घर पर रहने से कोई समस्या नहीं है, पर जब मेरा व्यापार नुकसान में चल रहा है तो क्या एक पत्नी की तरह उस का कोई फर्ज नहीं बनता कि वह भी घर खर्च में हाथ बंटाए?
मेरे घर वाले मुझ से ज्यादा शिखा को प्यार करते हैं. किसी ने मेरे से बिना बात करे मुझे मुजरिम करार कर दिया और मैं सुमित अपने परिवार को ले कर रोहतक से फरीदाबाद आ गया जैसेकि जगह बदलने से सब कुछ बदल जाएगा.
आप ने कभी सुना है कि कोई रिश्ता जगह या शहर बदलने से बदल गया हो?
रिश्ते की बुनियाद तो विश्वास पर टिकी होती है, पर शिखा के दिल में तो एक बात घर कर गई है कि मैं कभी भी कुछ ठीक नहीं कर सकता. कैसा लगता है आप को जब आप की पत्नी ही आप को नाकामयाब माने. भले ही वह मुंह से कुछ न बोले पर उस की आंखों में छिपा डर सब बयां कर दे?
यह डर किसी भी पुरुष को तोड़ने के लिए काफी होता है कि उस की जीवनसंगिनी ही उस को नाकामयाब मानती है. मैं तो जिंदगी की सब से बड़ी बाजी वैसे ही हार गया हूं फिर क्या फर्क पड़ता है यदि मैं व्यापार में हर चाल गलत चल रहा हूं?