अब तक की कथा :
मां को देखते ही दोनों बेटे विचलित हो उठे. अब दिया के अतिरिक्त यशेंदु की चिंता भी थी. पापा की टांग कट जाने पर दिया व दादी कैसे सहज रह सकेंगी? दिया ने मां व भाइयों की बात सुन ली थी और वह दादी को तथा अपनेआप को इन परेशानियों का कारण मान रही थी. लंदन से उस के ‘स्पौंसरशिप’ के कागजात आ चुके थे परंतु वह पिता को इस हालत में छोड़ने के लिए तैयार न थी. फोन पर नील मीठीमीठी बातें बनाता और अपनी व्यस्तता का ढोल पीटता. दिया हादसों से घबरा गई थी. यश उसे बारबार नील के पास जाने के लिए कहते.
अब आगे...
दिया को समझ नहीं आ रहा था कि करें तो करें क्या? बहुत सोचविचार कर लगभग एक हफ्ते बाद दिया ने अपने पिता से ससुराल जाने की हामी भर ही दी. कितनी रौनक सी आ गई थी यश के चेहरे पर. उन का बनावटी पैर अब तक लग चुका था और नर्स उन्हें गार्डन में रोज घुमाने ले जाती थी. मां समझतीं कि उन का बेटा अपने पैर की कसरत करने गार्डन जाता है. पता नहीं उन्होंने कहांकहां से गंडेतावीज ले कर यश और दिया के बिस्तरों के नीचे रखने शुरू कर दिए थे. कामिनी ने घर के नौकरों को समझा रखा था कि दिया के कमरे में ऐसा कुछ मिले तो दिया को बिलकुल न बताएं और चुपचाप उसे ला कर दे दें. नौकर यही करते. परंतु एक दिन न जाने कैसे जब नौकरानी दिया का बिस्तर साफ कर रही थी, उस के हाथ में दिया ने डोरी जैसी कोई चीज देख ली. वह अचानक वाशरूम से निकल कर उस के सामने आ कर खड़ी हुई.