अब तक की कथा
भविष्य के तानोंबानों में लिपटी दिया अपने घर पहुंच गई थी, जहां अनेक अनसुलझे प्रश्न उस के समक्ष मुंहबाए खड़े थे. दादी अतिउत्साहित थीं परंतु दिया किसी से भी बात नहीं करना चाहती थी. वह सीधे अपने कमरे में आराम करने चली गई थी.
अब आगे...
‘अरे, ऐसी भी क्या नींद हो गई, लड़की सीधे मुंह बात भी नहीं कर रही है,’ स्वभावानुसार दादी ने बड़बड़ करनी शुरू कर दी थी.कामिनी 3 बार दिया के कमरे में झांक आई थी. हर बार दिया उसे गहरी नींद में सोती हुई दिखाई दी. चाय के समय उस से रहा नहीं गया. सुबह से बच्ची ने कुछ भी नहीं खाया था. आखिर दिया को नीचे उतरते देख दीप चहका, ‘‘क्या महारानी, जल्दी आओ न, कितना इंतजार करवाओगी?’’ दीप वातावरण को सहज करना चाहता था. आखिर कहीं न कहीं से, किसी को तो बात शुरू करनी ही होगी. दिया चुपचाप टेबल पर बैठ गई.
‘‘महाराज, फटाफट चाय लगाइए. देख दिया, कैसे करारे गरमागरम समोसे उतारे हैं महाराज ने,’’ दीप ने गरम समोसा हाथ में उठाया फिर एकदम प्लेट में छोड़ कर अपनी उंगलियों पर जोकर की तरह फूफू करने लगा. दिया के चेहरे पर भाई की हरकत देख कर पहली बार मुसकराहट उभरी. आदत के अनुसार, दीप की बकबक शुरू हो गई और दिया की मुसकराहट गहरी होती गई. भरे दिल और नम आंखों से उस ने सोचा, ‘यह है मेरा घर.’
‘‘सुबह मंगवाई थी रसमलाई तेरे लिए. अभी तक किसी ने छुई भी नहीं...दीनू, निकाल के तो ला फ्रिज से,’’ दादी के प्यार का तरीका यही था.
‘‘अब बता कैसी है तेरी ससुराल? और हां, फोन खराब है क्या? कई दिनों से कोई फोन ही नहीं उठा रहा था. कहीं घूमनेवूमने निकल गए थे क्या सब के सब? तेरी सास और नील तो ठीक हैं न? अभी तो रहेगी न? और हां, तेरा सामान कहां है?’’