कामिनी यश की मनोदशा समझ रही थी परंतु उस समय कुछ भी बोलने का औचित्य नहीं था, सो चुप ही रही. यश का स्वभाव था यह. वे अपने और मांपिता के सामने किसी की नहीं सुनते थे. लेकिन जब अपनी गलती का एहसास करते तो स्वयं बेचैन हो जाते और अपनेआप को सजा देने लगते. कामिनी अजीब सी स्थिति में हो जाती है. ऐसे समय में न वह यश से यह कह पाती है कि उन्होंने उन की बात नहीं मानी, यह उसी का परिणाम है. और न ही वह यश की दुखती रग पर मलहम लगा पाती है. ऐसी स्थिति में शिष्ट व सभ्य, सुसंस्कृत कामिनी अपनी ही मनोदशा में झूलती रहती है. यश रातभर करवटें बदलते रहे. कामिनी भी स्वाभाविक रूप से बेचैन थी. आखिर कामिनी से नहीं रहा गया.
‘‘इतना बेचैन क्यों हो रहे हो यश? सब ठीक हो जाएगा,’’ कामिनी ने यश के बालों को सहलाते हुए धीरे से कहा.
‘‘यह छोटी बात नहीं है, कामिनी. कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. यह मेरी बिटिया के भविष्य का प्रश्न है,’’ और अचानक यश ने पास में रखे फोन को उठा कर नंबर मिलाना शुरू कर दिया.
कामिनी ने घड़ी देखी. सुबह के 5 बजे थे यानी लंदन में रात के 12 बजे होंगे.
उधर से उनींदी आवाज आई, ‘‘हैलो, कौन?’’
‘‘मैं, यश, इंडिया से,’’ यश ने स्पीकर औन कर दिया था. शायद कामिनी को भी संवाद सुनाना चाहते थे.
‘‘अरे, नमस्कार यशजी, इस समय कैसे? सब ठीक तो है?’’ नील की मां की उनींदी आवाज फोन पर थी.
कामिनी ने बड़ी आजिजी से यश को इशारा किया कि वे बिना बात, बात को न बिगाड़ें. आखिर उन की बेटी का सवाल है. यश को शायद कामिनी की बात कुछ जंच गई. थोड़े धीमे लहजे