सेवानिवृत्त होने के बाद मुझ जैसे फिट इनसान के लिए दिन काटना एक समस्या बन गया था. जिस ने जीवन भर साथ निभाने का वादा किया था वह 2 साल पहले दुनिया छोड़ कर चली गई. उस के साथ का अभाव अब बहुत खलता था.

बड़ा बेटा अपने परिवार के साथ अमेरिका में बस गया है. उस का साल में एक चक्कर लगता है. छोटा बेटा और उस की पत्नी मुंबई में नौकरी करते हैं. वे हमेशा अपने पास रहने को बुलाते हैं पर मन नहीं मानता. यह इलाका और आसपास के लोग जानेपहचाने हैं. इन्हें छोड़ कर जाने की बात सोचते ही मन उदास हो जाता है.

‘‘सर, आप के पास पैसा और जीने का उत्साह दोनों ही हैं. आप को अकेलेपन की पीड़ा क्यों भोगनी है? अपने मनोरंजन और खुशी के लिए आप को बढि़या कंपनी बड़ी आसानी से मिल सकती है.’’ ये शब्द 21 साल की शुचि ने मुझ से आज सुबह के वक्त पार्क में कहे तो मैं मन ही मन चौंक पड़ा था.

शुचि से मेरी मुलाकात सप्ताह भर पहले सुबह की सैर के समय पार्क में हुई थी. उस दिन मैं घूमने के बाद बैंच पर बैठ कर सुस्ता रहा था और वह कुछ दूरी पर व्यायाम कर रही थी.

मैं बारबार उस की तरफ देखने से खुद को रोक नहीं पा रहा था. उस के युवा, सांचे में ढले खूबसूरत जिस्म को हरकत करते देखना मुझे अच्छा लग रहा था, इस तथ्य को मैं बेहिचक स्वीकार कर लेता हूं.

एक्सरसाइज करने के बाद उसी ने मौसम के ऊपर टिप्पणी करते हुए मेरे साथ वार्तालाप शुरू किया था. करीब 10 मिनट हमारे बीच बातें हुईं पर इतनी छोटी सी मुलाकात से मिली ताजगी और खुशी दिन भर मेरे साथ बनी रही थी.

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