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पहला भाग पढ़ने के लिए- लंबी कहानी: न जानें क्यों भाग- 1

‘‘मैं जानती हूं कि मैं क्या कह रही हूं. भैया को देखो, हर साल अपने बच्चों के जन्मदिन पर कितनी शानदार पार्टी देते हैं. और जब मैं ने राघव से मुसकान की बर्थडे पार्टी देने की बात कही तो उस ने मना कर दिया और गिफ्ट के नाम पर एक अदनी सी साइकिल ला कर मुसकान को पकड़ा दी. मेरे सिर पर राघव के प्यार का ऐसा भूत सवार था कि मैं ने मम्मीपापा, भैयाभाभी किसी की बात नहीं सुनी. एक बार भी नहीं सोचा कि राघव के साथ मेरा क्या भविष्य होगा. मैं अपने बच्चों को कैसा भविष्य दूंगी. अगर उसी वक्त मैं ने इमोशनल हो कर सोचने के बजाय प्रैक्टिकल हो कर सोचा होता तो आज यह नौबत नहीं आती. रुखसाना मुझे लगता है मैं ने राघव से शादी करने में जल्दबाजी कर दी,’’ मानसी ने शून्य में ताकते हुए कहा.

‘‘मानसी, तू अपनी नहीं अपने भाईभाभी की जबान बोल रही है. अगर तुझे यकीन होता कि राघव से शादी करना तेरी गलती थी तो तू मुझ से इस तरह नजरें चुरा कर नहीं, नजरें मिला कर बात करती. क्या तू भूल गई है कि राघव ने तेरे लिए कभी किसी की परवाह नहीं की. हमेशा सिर्फ तेरी खुशियों के बारे में सोचा. अगर राघव को पता चल गया कि तू उस के बारे में...’’ रुखसाना अचानक बीच ही में चुप हो गई.

‘‘बोल न रुखसाना, तू चुप क्यों हो गई?’’ अपनी सहेली के अचानक खामोश हो जाने पर मानसी ने उस की ओर देखते हुए पूछा तो पाया कि रुखसाना एकटक दरवाजे की ओर देख रही थी.

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