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5 मिनट तक दोनों के बीच मौन पसरा रहा, फिर विद्या ने ही सवाल किया, ‘‘वर्षा की दूसरी शादी करने की नहीं सोची? तलाक तो हो ही चुका है.’’

‘‘वह शादी और पुरुष के नाम से ही इतनी विरक्त हो चुकी है कि इस बारे में सोचना भी नहीं चाहती. बहुत कोशिशें की, मगर वह डिप्रैशन से ग्रस्त हो चुकी है... क्या करें...’’ मीता की आंखें डबडबा आईं.

विद्या समझ रही थी कि वर्षा के हालात का असर न सिर्फ घर पर, बल्कि मीता के

दांपत्य पर भी पड़ रहा होगा. वह और आरुष शायद पिछले डेढ़ साल से फिल्म देखने या घूमने भी नहीं जा पाए होंगे. घर में भी खुल कर बातें या हंसीमजाक नहीं कर पाते होंगे.

‘‘इस बीमारी का इलाज तो तुझे ही करना होगा. वर्षा की बीमारी को तुम सब कब तक भुगतते रहोगे?’’ विद्या ने सहानुभूति से कहा.

‘‘यह तो ऐसा दर्द है जो लगता है उम्रभर के लिए मिल गया है. कुछ समझ ही नहीं आ रहा है कि वर्षा को इस दर्द से कैसे उबारें,’’ मीता दुखी स्वर में बोली.

‘‘डाक्टर नब्ज देखता है, बीमारी पहचानता है और फिर इलाज भी करता है. बिना इलाज किए छोड़ नहीं देता. इसी तरह जीवन में भी दर्द और समस्याएं होती हैं. सिर्फ सहते रहने से ही बात नहीं बनती. उन्हें दूर तो करना ही पड़ता है, समय रहते इलाज करना पड़ता है.

‘‘शरीर के दर्द में डाक्टर पेनकिलर देता है. दर्द बहुत ज्यादा हो तो इंजैक्शन लगाता है. मन के दर्द में राहत देने के लिए हमें ही एकदूसरे के लिए पेनकिलर का काम करना पड़ता है. तुम भी वर्षा के लिए पेनकिलर बन जाओ, चाहे शुरू में थोड़ी कड़वी ही लगे, लेकिन तभी वह दर्द से बाहर आ सकेगी,’’ विद्या ने समझाया.

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