पिछला भाग पढ़ने के लिए- पेनकिलर- वर्षा की जिंदगी में आखिर क्या हुआ?
मीता सुखद आश्चर्य से भर गई. आज तक वर्षा सब से कतराती रही थी. उसे किसी से भी मिलने में डर लगता था और आज वह खुद विद्या से आग्रह कर रही है आने के लिए.
‘‘मैं बहुत जल्दी आऊंगी,’’ विद्या मुसकरा कर बोली, ‘‘याद रखना वर्षा डर किसी पर तब तक ही हावी रहता है जब तक वह उस से भागता रहता है. जिस दिन वह तन कर उस का सामना करने खड़ा हो जाता उसी पल खत्म हो जाता है. मेरी बात पर थोड़ा सोचना,’’ कह विद्या फिर आने का वादा कर के चली गई.
महीनों बाद वर्षा अपने कमरे से बाहर आंगन तक उठ कर आई विद्या को
विदा करने. मीता देख रही थी कुछ मिनटों में ही वर्षा के चेहरे पर हलकी सी रंगत आ गई है. उस दिन वर्षा ने बच्चों से हंस कर बातें कीं, उन्हें होमवर्क करवाया और फिर रात के खाने की तैयारी में मीता की मदद की.
दूसरे दिन स्कूल जाते हुए मीता की बेटी विशु ने उसे फिर टोका, ‘‘मां, आज मेरे सौफ्ट टौएज जरूर धो देना प्लीज.’’
‘‘हां, बेटा आज धो दूंगी.’’
बच्चों को स्कूल और पति को औफिस भेजने के बाद मीता ने घर के बाकी काम निबटाए. वर्षा की मदद से उस के काम आज जल्दी खत्म हो गए. तब उसे याद आया कि बच्चों के सौफ्ट टौएज धोने हैं.
वह बच्चों के कमरे में गई और अलमारी से खिलौनी निकालने लगी. तितली, कछुआ, गिलहरी अलगअलग तरह के टैडी बियर. उसे याद आया इन में से अधिकांश खिलौने तो वर्षा ने बनाए थे बच्चों के लिए. वर्षा खुद खिलौनों के पैटर्न और डिजाइन बनाती. फिर बाजार से खिलौनों के हिसाब से फर, चाइना फर, ऐक्रिलिक क्लोथ, आंखें, नाक आदि खरीदती और खिलौने बनाती. उस की बनाई तितली तो इतनी सुंदर और प्यारी थी कि बहुत से लोगों ने अपने बच्चों के लिए भी बनवाई थी उस से.