जब स्पेन ने फुटबाल का फीफा वर्ल्डकप जीता, उस समय रैंकिंग में जरमनी के पौल बाबा सब से ऊपर थे. हर गलीमहल्ले की तो छोडि़ए, हर चैनल और मोबाइल पर उन के चर्चे थे. हिंदुस्तान में तो रातोंरात उन के लाखों भक्त तैयार हो गए. इधर स्पेन जीता और उधर हमारे यहां श्रद्धालुओं का झुंड कटोरा ले कर जरमनी पहुंच गया चंदा मांगने.
आप सोच रहे होंगे कि फुटबाल को प्रोत्साहित करने के लिए कोई क्लब आदि खोलने के वास्ते. जी नहीं, वे चंदा एकत्रित कर रहे थे पौल बाबा का मंदिर बनाने के लिए. श्रद्धालु जनता के विश्वास को देख कर हमारा सिर सम्मान से झुक गया. चाहे गणेशजी को दूध पिलाना हो, चाहे एक रोटी से 2 रोटी बनाना हो, चाहे साईं बाबा के नाम पर 100 एस.एम.एस. करने हों, पूरा देश कितनी जल्दी एकजुट हो जाता है. धर्म, जाति, भाषा, प्रदेश का कोई भेदभाव नहीं रहता. पौल बाबा के मंदिर के लिए भी लोग इन तुच्छ भावनाओं से ऊपर उठ कर खुल कर सामने आए. डेविडजी, मलकानीजी कोई पीछे नहीं रहे. यदि चंदा नहीं दिया तो न जाने किस पर पौल बाबा कुपित हो जाएं.
खैर, जो भी हो, हम तो पौल बाबा की मूर्ति की कल्पना कर के ही रोमांचित हो रहे हैं. वाउ, कितनी यूनिक, सैंसेशनल और फेसिनेटिंग होगी पौल बाबा की मूर्ति. पौल बाबा बच्चों के आकर्षण का केंद्र बन गए थे. स्कूल बस में एक छोटा बच्चा पूछ रहा था, ‘‘यह औक्टोपस होता क्या है? कैसा दिखता है?’’ दूसरा अपना ज्ञान बघारने लगा, ‘‘यह एक समुद्री जीव है. 8 भुजाओं वाला, बड़ा ही डरावना और घिनौना सा.’’
‘‘ए चुप, किसी बाबा के बारे में ऐसा नहीं कहते, पाप लगता है,’’ तीसरे ने टोका.
‘‘ओए, के.बी.सी. के वक्त यह बाबा मिल जाता न, तो फिफ्टीफिफ्टी राउंड जीत कर मैं करोड़पति बन जाता.’’
हम तो हैरान हैं कि बच्चों का दिमाग है या कंप्यूटर? क्या से क्या सोच लेते हैं और क्याक्या योजना बना लेते हैं? इतना तो सही विकल्प पर बैठते वक्त पौल बाबा भी नहीं सोचते होंगे. वे तो खापी कर टुन्न पड़े होते हैं कि कोई आ कर उंगली कर देता है, ‘‘बाबा, गलती से आप की पिछली भविष्यवाणी सही निकल गई थी. इसलिए आज फिर आप को किसी एक कार्ड पर बैठना होगा.’’ अब पौल बाबा कभी स्कूल तो गए नहीं जो पढ़ सकें कि किस कार्ड पर क्या लिखा है, न उन को फुटबाल का कखग पता है, पर बेचारे कहें किस से? माथा पकड़ कर सोचते रह गए, ‘इनसानों की इस दुनिया में यही तो मुसीबत है. एक बार हवा में कोई तीर लग जाए तो बस लोग खुद को अर्जुन समझ बैठते हैं. अब तो जब तक 1-2 तीर गलत नहीं लगेंगे, मुए पकड़ाते ही रहेंगे. हमें क्या, चलाए जाते हैं.’
उधर, फुटबाल के ज्ञाता सिर धुन रहे हैं कि क्यों उन्होंने फुटबाल सीखनेसिखाने में इतने साल बरबाद किए. जब वे घंटों जोड़नेघटाने के बाद भी निश्चित तौर पर नहीं बता पा रहे कि कौन जीतेगा…और यह जानवर देश के झंडे पर बैठ कर बता सकता है कि कौन जीतेगा तो ऐसी विद्वत्ता का क्या फायदा? हम बस कयास पर कयास लगाए जा रहे हैं. यदि यह रणनीति रही तो वह जीत सकता है, ऐसा हुआ तो वह और वैसा हुआ तो वह…किसी में पौल बाबा जितना आत्मविश्वास नहीं है कि खट से अपने आसन से उतरे और झूमते हुए दूसरे आसन पर विराजमान हो जाए. क्या होगा यदि भविष्यवाणी गलत भी निकल गई तो? मार कर खा ही तो जाएंगे. हारने वाला मारने आएगा तो जीतने वाला अपनेआप बचाने आएगा. अपुन को किस बात की चिंता?
किटी पार्टी में महिलाएं सामयिक चर्चा में व्यस्त हैं, ‘‘मुझे पौल मिल जाएं न, तो खट से पता कर लूं कि कौन सा बौयफ्रैंड सच्चा है और कौन स्वार्थी.’’ दूसरी बोली, ‘‘मैं भी न डेट पर जाते वक्त कन्फ्यूज्ड हो जाती हूं कि कौन सी डे्रस पहनूं? आधा वक्त यह फैसला करने में ही निकल जाता है. पौल बाबा जिंदा होते तो झट बता देते कि फलां ड्रेस पहनो. सच, डेट पर टाइम पर पहुंच जाऊंगी तो कितना अच्छा लगेगा न?’’
‘‘मैं भी फिर उन्हीं से डिसाइड करा लेती इस बौयफ्रैंड को कंटीन्यू रखूं या ब्रेकअप कर लूं?’’
कुछ बड़ी उम्र की महिलाओं का अलग ग्रुप बन गया था, ‘‘मैं तो पति और बच्चों के खाने के नखरे झेलतेझेलते तंग आ गई हूं. इतने नकचढ़े हैं कि आलू बनाओ तो भिंडी मांगते हैं, पिज्जा बनाओ तो मंचूरियन चाहिए, टिफिन में परांठा डालो तो सैंडविच क्यों नहीं डाला?’’
‘‘अरे, हमारे यहां भी यही हाल है. हमारी कालोनी में पौल बाबा आए होते तो रोज उन से खाने की चिट निकलवा लेती. सारा लफड़ा ही खत्म.’’
‘‘श्श्श…धीरे बोल. पौल बाबा सुन लेंगे तो अनर्थ हो जाएगा. अरे, आज की तारीख में वे टौप रैंक पर चल रहे हैं. बस, उन्हीं का नाम जप. वे ही सही मार्ग सुझाएंगे.’’
मौसम विभाग वाले अलग रोजरोज की धमकियों से परेशान हो कर पौल बाबा की दुहाई दे रहे हैं. जब वे बारिश की भविष्य- वाणी करते हैं तो नहीं होती और जब नहीं करते तो हो जाती है. सब कर्मचारियों ने एक प्रार्थनापत्र लिख कर बड़े साहब को भेजा है कि कुछ भी कर के विभाग के लिए एक पौल बाबा लाया जाए. आखिर विभाग की इज्जत का सवाल है. जितने मुंह, उतनी बातें. हमें तो उस नन्हे से 8 भुजाओं वाले प्राणी पर दया आ रही है. बेचारा समुद्र की सारी उन्मुक्त अठखेलियां भुला कर कहां इनसानों के मायाजाल में आ फंसा. और यह लो, लोगों के मंसूबे पूरे भी नहीं हुए थे कि पौल बाबा के दुनिया छोड़ जाने की खबर आ गई. उड़ती चिडि़या के परों की आहट सुन लेने वाले बेचारे पौल बाबा अपनी मौत की आहट न सुन सके. चलो, जहां गए वहां तो वे लोगों से बचे रह पाएंगे.