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प्लाक्षा और विवान में गहराई तक दोस्ती थी. बात शादी तक पहुंचती, इस से पहले ही दोनों का ब्रेकअप हो गया. कुछ साल बाद दोनों की फिर से मुलाकात हुई, जो बढ़ती ही गई. अपनीअपनी शादी रुकवाने के लिए दोनों ने एकदूसरे के घर वालों के सामने नाटक किया और कुछ दिनों तक के लिए शादी रुकवा ली. उधर जिस लड़की साक्षी को विवान ने अपनी मंगेतर बताया था, उसे प्लाक्षा के बचपन के एक दोस्त आदित्य ने भी अपनी मंगेतर बता कर प्लाक्षा की उलझनें बढ़ा दी थीं. उन दोनों को एकसाथ प्लाक्षा ने मौल में भी खरीदारी करते देखा था. पर जब इस बात की जानकारी उस ने विवान को दी तो विवान ने कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई. प्लाक्षा को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है. जब वह विवान से मिली तो यह सुन कर और भी हैरान रह गई कि यह सब उस ने उसे ही पाने के लिए किया था.
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वह हार कर सोफे पर बैठ गया. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोलूं. दिमाग में पिछले कुछ दिनों की घटनाएं एक के बाद एक फिल्म की तरह चल रही थीं. विवान का अचानक मुझ से मिलना, अपनी मदद करने का आग्रह, मम्मीपापा से मिलवाना, साक्षी का फोटो, शादी... क्या वह सब कुछ झूठ था. इतनी आसानी से उस ने मुझे बेवकूफ बना दिया. इन सब चीजों के बीच उस का बदला हुआ रूप, मेरे लिए उस की परवाह, उस की आंखें क्या वह सब सच था या फिर वह भी बस झूठ, दिखावा था? मेरे लिए सच और झूठ के बीच भेद करना मुश्किल हो रहा था.