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प्रत्यक्षत:सब सामान्य सा लगता था पर मुंबई की रातदिन की चहलपहल भी सुहास के मन का अकेलापन खत्म नहीं कर पाती थी. उसे गांव से यहां नौकरी के लिए आए 2 साल हो गए थे पर मन नहीं लग रहा था. वह था भी अंतर्मुखी. वीकैंड की किसी पार्टी में सहयोगियों के साथ गया भी, तो बोर हो गया. सब बैचलर्स अपनीअपनी गर्लफ्रैंड के साथ आते थे और खूब मस्ती करते थे पर उस का मन कुछ और ही चाहता था. शांत, सहृदय, इंटैलिजैंट सुहास को लोग पसंद भी करते थे. लड़कियां उसे पसंद करती थीं, उस का सम्मान करती थीं. वह था भी गुडलुकिंग, बहुत स्मार्ट, पर उस का मन स्वयं को बहुत अकेला पाता था. गांव में उस के मातापिता उस का अकेलापन देखते हुए उस के पीछे भी पड़े थे पर सुहास को किसी लड़की की चाह नहीं थी. लड़कियों के लिए उस के दिल में कभी वैसी भावनाएं जगी ही नहीं थीं कि वह विवाह के लिए तैयार होता.

सोसायटी के गार्डन में डिनर के बाद सुहास टहलने जरूर जाता था. वहां खेलते बच्चे उसे बहुत अच्छे लगते थे. वहीं एक दिन घूमतेटहलते किसी और बिल्डिंग में रहने वाले नितिन से उस की मुलाकात हो गई. नितिन बैंगलुरु से आया था और अपनी विवाहित बहन के घर रहता था. दोनों को ही एकदूसरे की कंपनी खूब भाई. महीनेभर के अंदर ही दोनों अच्छे दोस्त बन गए. दोनों को ही स्पष्ट समझ आ गया कि दोनों को ही शारीरिक और मानसिकरूप से एकदूसरे के जैसा ही साथी चाहिए था.

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