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आईएएस की कोचिंग के लिए पारुल दिल्ली के एक गर्ल्स होस्टल में रहती थी. एक दिन जब वह कोचिंग के लिए निकली तो तेज बारिश में फंस गई और एक घर के सामने बारिश से बचने के लिए खड़ी हो गई. तभी एक बच्ची गेट पर आई और उस की गोद में जा बैठी. वह बच्ची को छोड़ने घर के अंदर गई तो एक आंटी ने उसे बताया कि यह उस की नातिन है. अब पारुल रोज ही वहां जाने लगी. वहां उस की मुलाकात डाक्टर प्रियांशु से हुई, जिस ने पारुल को अपने साथ शादी करने का प्रस्ताव दे डाला. घर वालों को इस रिश्ते से कोई ऐतराज नहीं था. अत: दोनों की शादी हो गई. वह चाहती थी कि उस मासूम बच्ची की मां प्रियंवदा तो नहीं रही पर बच्ची के पिता शेखर को उस के प्यार से महरूम न किया जाए. एक दिन शेखर का पता मिला तो उस ने उसे पत्र लिख दिया...

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करीब 1 माह बाद दरवाजे की घंटी बजी. मैं ने जा कर देखा तो कोई आदमी खड़ा था. बोला, ‘‘डाक्टर प्रियांशु, श्रीमती पारुल और कमला देवी को बुलाइए, कोर्ट का समन है. मम्मीजी भी तब तक आ गई थीं. हम ने अपने नाम उसे बताए. तब मुझे और मम्मीजी को उस ने कुछ कागज दिए. एक कौपी प्रियांशुजी के लिए थी. हमारे दस्तखत ले कर चला गया. मैं ने जब उन कागजों को देखा तो लगा चक्कर आ जाएगा. शेखर ने हम पर केस किया था कि हम उस के नाम का उपयोग प्रियंवदा की नाजायज बच्ची के लिए करना चाहते हैं और उस को बदनाम कर उस की दौलत ऐंठना चाहते हैं.

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