पिछला भाग पढ़ने के लिए- समर्पण भाग-1
मेरी यह योजना सुधा को बेहद पसंद आई. उस की आंखों में खुशी के आंसू भर आए. वह बोली, ‘‘अब मैं पूरी तरह से आप को समर्पित हूं. आप जो भी मुझे प्यार से देंगे उसे मैं अपना हक समझ कर खुशी से स्वीकार करूंगी,’’ और फिर एकाएक आगे बढ़ कर उस ने
मेरा माथा चूमलिया. कहने लगी, ‘‘प्रोफेसर, आप से मिलने के बाद मेरी कई मुश्किलें हल होती दिखाई देती हैं.’’
मैं ने महसूस किया कि एकदूसरे का सामीप्य तनमन को प्यार के रंग में भिगो देता है. हमारे जीवन मेें वे कुछ अनमोल क्षण होते हैं जिन से हमें जीवन भर ऊर्जा और जीने का मकसद मिलता है.
जवानी की दहलीज पर खड़ी सुधा पूरी उमंग और जोश में थी. उसे प्रेम के प्रथम अनुभव की तलाश थी, उसे चाहिए था जी भर कर प्यार करने वाला एक प्रौढ़ और पुरुषार्थी प्रेमी, जो शायद उस ने मुझ में ढूंढ़ लिया था. नाजुक और व्यावहारिक क्षणों में कभीकभी नैतिकता बहुत पीछे रह जाती है.
घनिष्ठता के अंतरंग क्षणों में, चाय की चुस्कियां लेते हुए साहस कर सुधा ने पूछ ही लिया, ‘‘प्रोफेसर, कौन थी वह भाग्यशाली लड़की जो आप को पसंद आई थी. उस का नाम क्या था. देखने में कैसी लगती थी?’’
उस की रुचि देख कर मैं ने अपनी अलबम के पृष्ठ पलट कर, उसे कृष्णा की फोटो दिखाते हुए कहा, ‘‘उस का नाम कृष्णा था. बहुत सुंदर और अच्छी लड़की थी.’’
फोटो देख कर उसे झटका सा लगा लेकिन स्पष्टतौर पर उस ने जाहिर नहीं होने दिया.