‘‘मेरेसपनों को हकीकत में बदलने वाले आप क्या हो, आप नहीं समझ सकते. आप के लंबे से घने ब्राउन बालों में उंगलियां फिराना ऐसा है जैसे जंगल की किसी घनेरी शाम में अल्हड़ प्रेमी के साथ रात बिताने का ख्वाब. आप का चेहरा तो जैसे भोर का सूरज. 6 फुट की आप की बलिष्ठ काया मेरे लिए तूफान का रास्ता रोक लेगी. प्रद्युमन, मैं वापस आऊंगी तो आप प्रांजल को एक भाई देंगे वादा करो… आप के शरीर का अंश अपनी देह में सजाना चाहती हूं मैं.’’
‘‘प्रेक्षा, अभी तुम्हारी पढ़ने की उम्र है. इन खयालों को अब दिल से निकाल फेंको. तुम्हें कई सालों से यही समझा रहा हूं मैं… विद्या साधना मांगती है. तुम्हारा ध्यान इतना भटकता क्यों है? क्यों तुम अपने मन को इतनी खुली छूट देती हो? कैरियर बनाने का समय है यह, यह क्यों नहीं समझती?’’
‘‘चलो कुछ भी नहीं कहूंगी आप से फिर कभी, बल्कि बात ही नहीं करूंगी आप से.’’
‘‘प्रेक्षा,’’ वे उसे अपनी ओर खींच आलिंगन में बांध उस के होंठों पर मिठास से भरपूर चुंबन रख देते हैं. फिर कहते हैं, ‘‘तुम्हारा कैरियर से ध्यान न बंटे यही चाहता हूं न मैं.’’
‘‘पर मेरा ध्यान तुम्हारी ओर तब तक रहेगा जब तक तुम मुझ पर पूरी तरह ध्यान नहीं दोगे,’’ मोहपाश में डूबीडूबी सी प्रेक्षा ने प्यार जताया.
‘‘मेरे प्यार को नहीं समझती तुम?’’
‘‘समझती हूं, तभी तो तुम्हारे आगोश में डूबी रहना चाहती.’’
‘‘अब तो तुम 19 साल की हो गई, बड़ी हो गई हो न… अब और ध्यान न भटकने दो… तुम्हें इतनी दूर पिलानी भेज कर मैं कितना चिंतित रहूंगा मैं ही जानता हूं, लेकिन हमेशा रिजल्ट अच्छा करोगी तो ये 4 साल निकाल ही लूंगा.’’