‘‘ऐजी आप पहले जैसे नहीं रह गए,’’ एक वाक्य में श्रीमतीजी ने प्रस्ताव प्रस्तुत कर दिया.
हम सरकार के गिरने की उम्मीद लगा बैठे.
‘‘पगली तुम्हें आज 40 साल बाद यह महसूस क्यों हुआ?’’
‘‘देखो हम ने विकास के कितने सारे काम किए हैं. तुम ने सब चूल्हे में झोंक दिया?’’
‘‘बताओ क्या कमी देखती हो अपने सरकार में?’’
‘‘फिर हम भी अपनी सरकार की सुनाएंगे तो समझो चलती गाड़ी का पहिया बिलकुल रुक जाएगा?’’
हमारी चेतावनी पर ध्यान वे अकसर नहीं देतीं. इस बार भी वे इसे इग्नोर कर जातीं, मगर हम जज्बाती हो कर जरा तलखी में बोल गए थे. लिहाजा मामले ने दांपत्य जीवन की शांति भंग की सीमा लांघ दी थी. कुछ नर्म पड़ीं.
हम जानते थे कि दिलासे का जरा सा भी हाथ फेरा तो श्रीमती सुबक पड़ेंगी.
उन्हें नौर्मल करने के अंदाज में हम ने पूछा, देखो आप का बैल जैसा पति औफिस से सीधे घर आता है. ढेरो बालाएंबलाएं औफिस से घर के बीच टकराती घूमती हैं. उन से बच कर निकलता रहता है. फिर बताओ.
यह क्या बात हुई कि आप पहले जैसे नहीं रह गए?’’
‘‘चलो पहले वाली खूबियां गिनवा दो, खामियां बाद में सुन कर देखेंगे क्या बात है? आज शादी के 40 साल बाद आप ने विपक्ष की तरह लंबा मुंह खोला है.’’
‘‘जब हनीमून में गए थे तब आप कैसे आगेआगे हर काम कर रहे थे. स्टेशन से बैग लादना, हर रैस्टोरैंट में और्डर देने के पहले बाकायदा पसंद का पूछना, हर शौपिंग मौल में कितना एतराज कि हमारी ली हुई चीजों की तारीफ करना, उस पर यह कहना कि वेणु आप की पसंद लाजवाब है. मैं विभोर हो जाती थी. आप यह भी कहते तुम्हारा टेस्ट अच्छा है वेणु.’’