पिछला भाग- लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-5)
‘‘हैपी बर्थ डे मौसी’’
गिफ्ट ले पुलकित मुख से गुस्सा दिखाया दुर्गा ने, ‘‘कहा था न गिफ्ट मत लाना.’’
वो हंसी. आज बहुत ही सुंदर लग रही है वो एकदम ओस धूली अभीअभी खिली फूल जैसी. कल ही घमासान हुई है बंटी के साथ पर बंटी के चेहरे पर उस की कोई झलक तक नहीं. हंस कर बोला,
‘‘हाई बेबी.’’
‘‘हाई आंटी, नमस्ते. कैसी हैं आप?’’
‘‘ठीक हूं बेटी. पर मंजरी के बिना मेरी शौपिंग, पार्टी, मूवी सब सूनी हो गई. लोग कितनी उमर तक बैठे रहते हैं और उसे ही जल्दी पड़ी थी मुझे छोड़ जाने की. उन्होंने सुगंधित रूमाल सूखे आंखों पर रगड़ा, दुर्गा ने परिवेश भारी होते देख प्रसंग बदला, ‘‘तुझे लंच पर बुलाया था और तू मेहमान की तरह अब आ रही है.’’
बैठ गई शिखा, एक माजा उठाया.
‘‘क्या करूं काम इतना बढ़ गया है कि...’’
कहते ही मन ही मन उस ने सिर पीटा, यह क्या कह गई दुश्मनों के सामने.
‘‘हां सुना है तू ने बड़ी कुशलता से बिजनैस को बढ़ाया है मंजरी जो छोड़ गई थी उस से दो गुना हो गया है...’’
‘‘मुझे भला क्या आता है मांजी? सब दादू की मेहनत है.’’
‘‘हां सुना है अब विदेश में भी खूब काम चल पड़ा है.’’
‘‘खूब तो नहीं बस पैर रखा ही है. बेचारे दादू ही दोतीन बार विदेश दौड़े इस उम्र में अकेले तब जा कर...’’
‘‘तू भी तो सब छोड़ लगी पड़ी है.’’
‘‘लगना पड़ता है. ईमानदारी और सिनसियर ना हो तो बिजनैस मजधार में डूबता है.’’
एकपल के लिए उस ने मांबेटे पर नजर डाली. देखा दोनों का मुंह फूल गया है. नंदा ने बड़ी चालाकी से बात संभालने का प्रयास किया, ‘‘बेबी, हमें सब से ज्यादा खुशी है, तुम्हारी कामयाबी से, पर तुम्हारी मां की जगह मैं हूं इसलिए तुम्हारे लिए चिंता और डर मन में लगा ही रहता है.’’