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पिछला भाग- लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-8)

जानकीदास की चिंता और बढ़ी. मेहता परिवार अब पूरी तरह से निराश हो चुका है. ‘‘सोनी कंपनी’’ का एक तिनका भी उन के हाथ नहीं लगने वाला यह शिखा ने खुल कर समझा दिया है. बंटी अब पता नहीं किस तरह से वार करेगा पर उन को पूरा विश्वास है करेगा जरूर और उस का सीधा निशाना होगी शिखा. वो छटपटा रहे थे. उसे किसी मजबूत और सुरक्षित हाथों में सौंपने पर वो भी जिद पकड़ बैठी है शादी ना करने की. ना समझ लड़की यह नहीं समझ पा रही कि मां से बदला लेने वो अपना ही सर्वनाश कर रही है. बारबार पोती को सावधान कर रहे हैं. फिर भी उन के अंदर का भय उन को त्रस्त कर रहा. शिखा दादू के इस आतंक को जानती है पर एक भय की आशंका से घर में तो नहीं बैठ सकती वो भी जो इतनी बड़ी कंपनी की कर्णधार है. उसे पता है बंटी नीचता की सीमा कब का पार कर चुका है. सतर्क वो भी है. इसी समय एक दिन सहपाठी चंदन का फोन आया. वो एक बड़े फाइनैंस कंपनी के मालिक का बेटा है. अब परिवार का व्यापार संभाल रहा है. कभीकभार ही मिलते हैं पुराने साथी. चंदन से लगभग 1 वर्ष बाद संपर्क हुआ. शिखा भी नीरस जीवन से उकता रही थी. चहक उठी,

‘‘चंदन? तू. कहां है इस समय?’’

‘‘तेरे आफिस के एकदम पास. तू किसी मीटिंग में तो नहीं.’’

‘‘अरे नहीं. आज काम करने का मन ही नहीं कर रहा. चला आ प्लीज.’’

‘‘दस मिनट में आया.’’

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