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लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

"सुनो ...प्रीती ....कल तुम मुझे रोज़ की तरह ऑफिस के लिए पिक करने मत आना " खुशबू ने कहा

"क्यों ...क्या तू कल ऑफिस नहीं आयेगी ? " प्रीती ने पूछा

"  अ.....हाँ यार ....कल थोड़ा शहर के बाहर जाना है मुझे "खुशबू ने थोड़ा मुस्कुराते हुए उत्तर दिया

"शहर के बाहर ....ओह  समझ गयी यार ...सीधे सीधे बता ना कि तू ओवरटाइम करने जा रही है " खुशबू के कंधे पर हाथ मारते हुए उसकी ऑफिस की सहेली प्रीती ने कहा

"भाई  तेरा काम ही बढ़िया  है ....ऑफिस की सारी लडकियां बॉस के आगे पीछे लगी रहती है कि बॉस एक नज़र उन पर भी डाल ले पर वो है कि बस ओवरटाइम करने का मौका तुझे ही देता है "बेशर्मी से हसते हुए प्रीती ने कहा

" अब क्या करूँ यार ....इस बेदर्द ज़माने में जमे रहने के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ होती है रुपया और रुपया आता है मेहनत करने से ...अब ये बात अलग है कि वो मेहनत ऑफिस टाइम में करी जाए या कि ऑफिस के बाद ओवरटाइम करके ..…."कहकर शरारत से मुस्कुराने लगी थी खुशबू.

खुशबू ... एक सामान्य घर की लड़की,जिसने इस ज़माने के लगभग हर रंग को देखा था और यही वजह थी कि वो सबसे ज्यादा पैसे को अहमियत देती थी और पैसे के लिए वो सब कुछ करने को तैयार रहती थी.

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अभी इस ऑफिस को ज्वाइन किये हुए खुशबू को कुछ एक महीना ही हुआ था पर अपने बॉस की नज़रों में बहुत अच्छा स्थान हासिल कर लिया था खुशबू ने .

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