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मेहर ने क्या चाहा था. बस, शादी के बाद एक सुकूनभरी जिंदगी. वह भी न मिल सकी उसे. पति ऐसा मिला जिस ने उसे पैर की जूती से ज्यादा कुछ न समझा. लेकिन वक्त की धारा में स्थितियां बदलती हैं और वह ऐसी बदली कि...

एक लंबी जद्दोजेहद के बावजूद कामांध मुकीम बारबार मुंह से  फुंफकार निकालते हुए सहर को अपनी तरफ खींचने के लिए जोर लगा रहा था. तभी मैं ने एक जोरदार लात उस के कूल्हे पर दे मारी. वह पलट कर चित हो गया. गुस्से से बिफर कर मैं ने दूसरी लात उस के ऊपर दे मारी. दर्द से चीखने लगा. मारे दहशत के मैं ने जल्दी से सहर का हाथ खींच कर उठाया और तेजी से उसे कमरे से बाहर खींच कर दरवाजे की कुंडी चढ़ा दी. और धड़धड़ करती सीढि़यां उतर कर संकरे आंगन के दूध मोगरे के पेड़ के साए तले धम्म से बैठ कर बुरी तरह हांफने लगी.

रात का तीसरा पहर, साफ खुले आकाश में तारे टिमटिमा रहे थे. नीचे के कमरों में देवरदेवरानी और सास के खर्राटों की आवाजें गूंज रही थीं. दोनों बहनें दम साधे चौथे पहर तक एकदूसरे से लिपटी, गीली जमीन पर बैठी अपनी बेकसी पर रोती रहीं. ऊपर के कमरे में पूरी तरह खामोशी पसरी पड़ी थी. नशे में धुत मुकीम शायद सुधबुध खो कर सो गया था.

अलसुबह मैं छोटी बहन को उंगली के इशारे से यों ही चुप बैठे रहने को कह कर दबे कदमों से ऊपर पहुंची. बिना आवाज किए कुंडी खोली. हलके धुंधलके में मुकीम का नंगा शरीर देखते ही मुंह में कड़वाहट भर गई. थूक दिया उस के गुप्तांग पर. वह कसमसाया, लेकिन उठ नहीं सका. मैं ने पर्स में पैसे ठूंसे और दोनों नींद से बो िझल बच्चों को बारीबारी कर के नीचे ले आई और दबेपांव सीढि़यां उतर गई. दोनों बहनें मेनगेट खोल कर पुलिस थाने की तरफ जाने वाली सड़क की ओर दौड़ने लगीं.

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