धीरेधीरे अवंतिका रमन की सैक्रेटरी कम और उस की पर्सनल अधिक होने लगी. कहीं आग लगे तो धुआं उठना स्वाभाविक है. अवंतिका और रमन को ले कर भी औफिस में थोड़ीबहुत गौसिप हुई, लेकिन आजकल किसे इतनी फुरसत है कि किसी के फटे में टांग अड़ाए. वैसे भी हमाम में सभी नंगे होते हैं.
लगभग 2 साल बाद रमन का ट्रांसफर हो गया. जातेजाते वह अंतिम उपहार के रूप में उसे वेतनवृद्धि दे गया. रमन के बाद अमन डाइरैक्टर के पद पर आए. कुछ दिन की औपचारिकता के बाद अब अवंतिका अमन की पर्सनल होने लगी.
धीरेधीरे अवंतिका के घर में सुखसुविधाएं जुटने लगीं, लेकिन मियां गालिब की, ‘‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,’’ की तरह अवंतिका की ख्वाहिशों की सूची आम लड़कियों से जरा लंबी थी. इस जन्म में तो खुद उस की और सुकेश की तनख्वाह से उन का पूरा होना संभव नहीं था.
अब यह भी तो संभव नहीं न कि बची हुई इच्छाएं पूरी करने के लिए किसी और जन्म का इंतजार किया जाए. सबकुछ विचार कर आखिर अवंतिका ने तय किया कि इच्छाएं तो इसी जन्म में पूरी करनी हैं, तरीका चाहे जो हो.
आजकल अवंतिका की निगाहें टीवी पर आने अपनी वाले हीरे के आभूषणों वाले विज्ञापनों पर अटक जाती है.
‘हीरा नहीं पहना तो क्या पहना,’ अपनी खाली उंगली को देख कर वह ठंडी सांस भर कर रह जाती.
‘समय कम है अवंतिका. 28 की होने को हो, 35 तक ढल जाओगी. जो कुछ हासिल करना है, इसी दरमियां करना है. फिर यह रूप, यह हुस्न रहे न रहे,’ अवंतिका अपनी सचाई से वाकिफ थी. वह जानती थी कि अदाओं के खेल की उम्र अधिक नहीं होती, लेकिन कमबख्त ख्वाहिशों की उम्र बहुत लंबी होती है. ये तो सांसें छूटने के साथ ही छूटती हैं.
ये भी पढ़ें- जिंदगी की धूप: मौली के मां बनने के लिए क्यों राजी नहीं था डेविड
‘क्या करूं, अमन सर ने तो पिछले दिनों ही उसे सोने के इयररिंग्स दिलाए थे. इतनी जल्दी हीरे की अंगूठी मुश्किल है. सुकेश से कहने का कोई मतलब भी नहीं. तो क्या किया जाए? कैसे अमन सर को शीशे में उतारा जाए,’ अवंतिका दिनरात इसी उधेड़बुन में थी कि अचानक अमन के ट्रांसफर और्डर आ गए. अवंतिका खुशी से झम उठी. अब आलोक उस के नए बौस थे.
‘हीरा तो नए बौस से ही लिया जाएगा,’ सोच कर उम्मीद की किरण से उस की आंखें चमक उठीं, लेकिन आलोक को प्रत्यक्ष देखने के बाद उस की यह चमक फक्क पड़ गई.
दरअसल, आलोक उस के पहले वाले दोनों बौस से अधिक जवान था. लगभग 40 के आसपास. उम्र का कम फासला ही अवंतिका की चिंता का कारण था क्योंकि इस उम्र में लगभग हरेक पुरुष अपने बैडरूम में संतुष्ट ही रहता है.
‘कौन जाने मुझ में दिलचस्पी लेगा भी या नहीं,’ आलोक को देख कर अवंतिका के होंठ सिकुड़ गए.
तभी विचार कौंधा कि वह औरत ही क्या जो किसी पुरुष में खुद के लिए दिलचस्पी पैदा ना कर सके और यह विचार आते ही अवंतिका ने आलोक को एक प्रोजैक्ट के रूप में देखना शुरू कर दिया.
‘लक्ष्य हासिल हो या न हो, लेकिन खेल तो मजेदार जरूर होने वाला है,’ सोच स्टाफ के अन्य कर्मचारियों के साथ मुसकराती हुई खड़ी अवंतिका ने आगे बढ़ कर अपना परिचय दिया. वह यह देख कर कुछ निराश हुई कि आलोक ने उसे ठीक से देखा तक नहीं, लेकिन अवंतिका हार मानने वालों में से नहीं थी. वह हर बाजी जीतना जानती थी. हुस्न, जवानी, अदाएं और शोखियां उस के हथियार थे.
पर्सनल सैक्रेटरी थी तो बहुत से पर्सनल काम जैसे बौस के लिए कौफी बनाना, लंच और्डर करना आदि भी अवंतिका ने खुद पर ले रखे थे. आलोक के लिए भी वह ये सब अपनी ड्यूटी समझ कर कर रही थी.
बैंगल बौक्स में रखी चूडि़यां आखिर कब तक न खनकतीं. आलोक भी धीरेधीरे उस से खुलने लगा. बातों ही बातों में अवंतिका ने जान लिया कि एक ऐक्सिडैंट के बाद से आलोक की पत्नी के कमर से नीचे के अंग काम नहीं करते. पिछले लगभग 5 वर्षों से उस का सारा दैनिक काम भी एक नर्स की मदद से ही हो रहा है. अवंतिका उस के प्रति सहानुभूति से भर गई.
कभीकभार वह उस से मिलने आलोक के घर भी जाने लगी. इस से आलोक के साथ उस के रिश्ते में थोड़ी नजदीकियां बढ़ीं. इसी दौरान एक रोज उसे आलोक के शायराना शौक के बारे में पता चला. डायरी देखी तो सचमुच कुछ उम्दा गजलें लिखी हुई थीं.
अवंतिका उस से गीतों, गजलों और कविताओं के बारे में अधिक से अधिक बात करने लगी. लंच भी वह उस के साथ उस के चैंबर में ही करने लगी. खाना खाते समय अकसर अवंतिका अपने मोबाइल पर धीमी आवाज में गजलें चला देती. कभीकभी कुछ गुनगुना भी देती. आलोक भी उस का साथ देने लगा. अवंतिका ने उस के शौक की शमा को फिर से रोशन कर दिया. बात शौक की हो तो कौन व्यक्ति भला पिघल न जाएगा.
‘‘सर प्लीज, कुछ लाइनें मुझ पर भी लिखिए न,’’ एक रोज अवंतिका ने प्यार से जिद की.
आलोक केवल मुसकरा कर रह गया.
सप्ताहभर बाद ही आलोक को पास के गांव में एक किसान कैंप अटैंड करने की सूचना मिली. अवंतिका को भी साथ जाना था. दोनों औफिस की गाड़ी से अलसुबह ही निकल गए. अवंतिका घर से सैंडविच बना कर लाई थी. गाड़ी में बैठेबैठे ही दोनों ने नाश्ता किया. फिर एक ढाबे पर रुक कर चाय पी. 2 घंटे के सफर में दोनों के बीच बहुत सी इधरउधर की और कुछ व्यक्तिगत बातें भी हुईं. कच्ची सड़क पर गाड़ी के हिचकोले उन्हें और भी अधिक पास आने का अवसर दे रहे थे. अवंतिका ने महसूस किया कि आलोक की पहले झटके पर टकराने वाली ?िझक हर झटके के साथ लगातार कम होती जा रही है.
ये भी पढ़ें- मैं जरा रो लूं : मधु को क्यों आ गया रोना
‘मैन विल बी मैन,’ एक विज्ञापन का खयाल आते ही अवंतिका मुसकरा दी.
कैंप बहुत सफल रहा. हैड औफिस से मिली बधाई के मेल ने आलोक के उत्साह को कई गुना बढ़ा दिया. वापसी तक दोनों काफी कुछ अनौपचारिक हो चुके थे. खुशनुमा मूड में आलोक ने अपनी एक पुरानी लिखी गजल तरन्नुम में सुनाई तो अवंतिका दाद दिए बिना नहीं रह सकी.
‘‘मैं ने भी आप से कुछ पंक्तियां लिखने का आग्रह किया था. कब लिखोगे?’’ कहते हुए उस ने धीरे से अपना सिर आलोक के कंधे की तरफ झका दिया.
उस के समर्पित स्पर्श से आलोक किसी मूर्ति की भांति स्थिर रह गया.
‘‘अगली बार,’’ किसी तरह बोल पाया.
यह अगली बार जल्द ही आ गई. विभाग के सालाना जलसे में भाग लेने के लिए दोनों को सपरिवार गोवा जाने का निमंत्रण था. आलोक
की पत्नी का जाना तो नामुमकिन था ही, अवंतिका ने भी औपचारिक रूप से सुकेश को साथ चलने के लिए कहा, लेकिन उस ने औफिस में काम अधिक होने का कह कर असमर्थता जता दी तो अवंतिका ने भी अधिक जिद नहीं की.
उस की आंखों में एक बार फिर हीरे की अंगूठी नाचने लगी.
आगे पढ़ें- गोवा का रोमांटिक माहौल अवंतिका के
ये भी पढ़ें- दीवाली : राजीव और उसके परिवार को कौनसी मिली नई खुशियां