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लेखक- शोभा बंसल

सिमरन के पांव आज जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. उस के होमस्टे को 15 दिन के लिए बुक जो कर लिया गया था.

वैसे तो यह उत्साह उस में हमेशा से ही बना रहता है, क्योंकि पुडुचेरी में सिम्मी होमस्टे अपनेपन और पंजाबियत के लिए जो प्रसिद्ध है.

चंडीगढ़ से कोई डाक्टर राजीव यहां कौंफ्रेंस पर आ रहे थे और वह कुछ दिन यहां पर अपनी पत्नी के साथ रहने वाले थे, सो होमस्टे में स्पेशल तैयारियां चल रही थीं.

वैसे भी सिमरन का चंडीगढ़ से पुराना नाता रहा है, तो उस का उत्साह देखते ही बनता था. वजह, इस चंडीगढ़ से कितनी खट्टीमीठी यादें जुड़ी हैं. अतीत के पन्ने फड़फड़ा उठे.

पंजाब के नाभा की रहने वाली सिमरन कभी अपने दारजी और बेबे की आंखों का तारा थी. सिमरन, मतलब जिसे इज्जत से याद किया जाए. पर उस ने तो ऐसा कारनामा किया है कि शायद पीढ़ियों तक कोई भी उस के खानदान में सिमरन का नाम भूल कर भी नहीं लेगा. उस का तो जीतेजी उस की यादों के साथ और उस के नाम के साथ शायद पिंडदान कर दिया गया था. उस ने लंबी सांस खींचते सोचा, क्यों कट्टरपंथी होते हैं परिवार वाले?

सिमरन के स्कूल पास करने के बाद उस के मातापिता ने बड़े अरमानों और नसीहतों के साथ उसे आगे की पढ़ाई के लिए चंडीगढ़ भेज दिया.

खुलेखुले माहौल ने भोलीभाली सिमरन को अलग ही दुनिया में ला पटका. यह तो पहला पड़ाव था. पता नहीं ऐसे कितने ही पड़ाव उसे अभी देखने थे.

अब कालेज उस के लिए पढ़ाई के साथ आजादी और मौजमस्ती का अड्डा भी था. तब लड़कियों का इज्जत व मान भी था. अगर रैगिंग और छेड़छाड़ होती भी थी तो हेल्दी तरीके से. आज की तरह अनहेल्दी एटमोस्फेयर न था.

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अकसर जब उस की खूबसूरती पर लड़के फब्ती कसते तो ऊपर से तो वह बेपरवाह रहती, पर अंदर ही अंदर उसे अपने रूप पर फख्र महसूस होता.

एक दिन जब वह अपने रूममेट स्नेहा के साथ लाल फुलकारी दुपट्टा पहन कालेज पहुंची, तो अचानक
‘लाल छड़ी मैदान में खड़ी…’
का कोरस बज उठा.

गुस्से में उस ने जो पलट कर देखा तो सब शरारती लड़के सीटियां मारने लगे. तभी एक सीनियर ने सब को हाथ के इशारे से रोका. उस हरी आंखों वाले नौजवान ने आगे बढ़ कर डायलौग मारा, “कुड़िए तेरी मंगनी हो गई, तो फिर चाय पार्टी दे.”

यह सुन सिमरन के गाल शर्म से लाल हो उठे और उस ने फुलकारी से अपना मुंह ढक लिया.

यह देख उस सीनियर ने बड़ी अदा से फिल्मी अंदाज में गाना शुरू कर दिया, “रुख से जरा नकाब हटा दो मेरे हुजूर, जलवा फिर एक बार दिखा दो मेरे हुजूर…”

सिमरन ने गुस्से में पैर पटक कर जो जाना चाहा, तो उस ने सिमरन के पैरों में झुक कर अदा से बैठते हुए नया तराना शुरू किया, “अभी ना जाओ छोड़ कर, के दिल अभी भरा नहीं…”

और कुछ सीनियर लड़केलड़कियां स्नेहा, सिमरन और उस हरी आंखों वाले सीनियर के चारों तरफ घेरा डाल इस छेड़छाड़ का मजा लेने लगे और मिल कर गाने लगे, “कहां चल दिए इधर तो आओ हमारे दिल को यूं ना तड़पाओ.”

तभी किसी ने कहा, “पैट्रिक, भागो. प्रिंसिपल सर इधर ही आ रहे हैं.”

ऐसा सुनते ही सारे सीनियर खिसक लिए.

उस हरी आंखों वाले पैट्रिक की शरारत अकसर सिमरन के जेहन में आ कर उसे गुदगुदा जाती.

फिर एक दिन वह रिकशे में बैठ कर सैक्टर 17 जा रही थी, तभी एक मोटरसाइकिल उस की बगल से गुजरी और हेलमेट पहने किसी नौजवान ने फब्ती कसी, “अगर चुन्नी लेने का इतना ही शौक है तो ढंग से लिया करो. नहीं तो किसी दिन गले में फांसी का फंदा बन जाएगी…”

जब तक वह कुछ रिएक्ट करती और अपनी चुन्नी संभालती, तब तक उस के गले से चुन्नी फिसल कर रिकशे के पहिए में फंस गई.

यह सब इतनी जल्दी और अचानक हुआ कि उस की चीख निकल गई. लोग जब तक इकट्ठे होते, तब तक पैट्रिक ने अपना हेलमेट उतार उस की चुन्नी को पहिए से अलग किया और रिकशे वाले को पैसे दे रफादफा होने को कहा. फिर आंखें तरेर कर सिमरन को अपने साथ मोटरसाइकिल पर बैठा होस्टल वापस ले आया.

सिमरन को याद हो आया,
“बेबे सही कहती थी, चुन्नी जमीन को छूनी नहीं चाहिए. चुड़ैल चिमट जाती हैं.”

शायद उस की चुन्नी के सहारे इश्क चुड़ैल उस से चिपट चुकी थी.

वह तो बस पैट्रिक की हरी आंखों में डूबने को उतावली थी. जितना वह पैट्रिक को पाने की, छूने की कोशिश करती, उतना ही वह पता नहीं क्यों परेशान हो जाता और शादी से पहले ऐसे संबंधों को गलत बताता. वह उस के इस व्यवहार पर वारीवारी हो जाती.

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आज वह महसूस कर रही है कि सच में कुछ इनसान अंदर और बाहर से कितने अलग होते हैं. पता नहीं, कब गिरगिट की तरह रंग बदल ले. वक्त भी तो गिरगिट की तरह रंग बदलता है.

उन दिनों धीरेधीरे उन दोनों के बीच दोस्ती परवान चढ़ने लगी. अब पढ़ाई के साथ सिमरन और पैट्रिक कल्चर क्लब के एक्टिव मेंबर बन चुके थे.

उस की रूममेट स्नेहा ने उसे कई बार पैट्रिक के साथ ज्यादा नजदीकियां न बढ़ाने का इशारा भी किया. पर उसे उस की ईर्ष्या समझ सिमरन ने अनसुना कर दिया, क्योंकि सिमरन पर तो जैसे पैट्रिक की हरी आंखों का सम्मोहन छाया था. उस में आए बदलाव को उस की बेबे ने भी महसूस किया और उस की शादी के लिए दारजी पर दबाव डालना शुरू कर दिया.

इधर समय ने करवट ली. उन के कालेज के इंटर कालेज फेस्टिवल में उन दोनों का ‘हीररांझा’ नाटक देख एक प्रोड्यूसर ने उन्हें अपनी अगली पिक्चर में नायकनायिका बनाने का औफर दिया और अपना विजिटिंग कार्ड थमा दिया.

अब वे दोनों इस विजिटिंग कार्ड के पंखों पर सवार हो यथार्थ की दुनिया से सपनों की दुनिया में विचरने लगे.
इधर दोनों के फाइनल्स हुए, उधर सिमरन की शादी कपूरथला की जानीमानी अमीर पार्टी से पक्की हो गई.

पैट्रिक को भी केरल वापस आ कर चाय बागान संभालने का हुक्ममनामा मिला. दोनों के ही नायकनायिका बन दुनिया के दिलों पर राज करने के सपने चकनाचूर हो गए.
न तो सिमरन पक्की गृहस्थन बनना चाहती थी और न ही पैट्रिक चाय बागान का मालिक – एक ठेठ व्यापारी.

तभी जैसे उस की तंद्रा को तोड़ते नीचे रिसेप्शन से मैसेज मिला कि मिस्टर और मिसेज राजीव पहुंच गए हैं. अपने को एक बार शीशे में निहार सिमरन नीचे भागी.

होमस्टे का स्टाफ अतिथियों के लिए फ्रेश ड्रिंक्स और आरती का थाल ले कर स्वागत की पूरी तैयारी के साथ खड़ा था. पहला इंप्रेशन अगर अच्छा रहा तो खुदबखुद उस के होमस्टे की पब्लिसिटी हो जाएगी.

यह सोच कर सिमरन के होठों पर स्मित मुसकान आ गई. पर, जैसे ही उस ने राजीव दंपती को देखा तो लगा मानो पैरों तले जमीन निकल गई हो और उस के होठों पर आई मुसकान मानो वहीं जम गई. उस के सामने तो उस की कालेज के जमाने की रूममेट स्नेहा अपने पति डाक्टर राजीव के साथ खड़ी थी.

इधर स्नेहा भी सिमरन को यों यहां पुडुचेरी में होमस्टे की मालकिन देख ठगी सी रह गई. यह तो पैट्रिक के साथ मुंबई भाग गई थी. फिर यहां कैसे…?

इधर सिमरन ने भी वक्त की नब्ज देख गर्मजोशी से स्नेहा का हाथ पकड़ा और उस के गले लग गई.

डाक्टर राजीव ने स्नेहा की तरफ सवालिया निगाहों से देखा, तो उस ने इशारे से सब बाद में बताने को कहा. शायद वो यह नहीं देख पाए कि उस का इशारा करना सिमरन की निगाह से नहीं छुप पाया था.

एकबारगी तो सिमरन के चेहरे का रंग उड़ गया. कहीं उस का अतीत उस के सुखद और शांत वर्तमान और भविष्य पर हावी हो कर उथलपुथल न कर दे. फिर जब डाक्टर राजीव रिसेप्शन पर पेपर वर्क पूरा कर रहे थे, तो सिमरन ने स्नेहा का हाथ दबाते हुए उस के कान में कहा, “डा. राजीव को मेरे बारे में कुछ भी बताने से पहले मेरे से मिल लेना, प्लीज.”

उस दिन डा. राजीव की पुडुचेरी के एक आश्रम में कौंफ्रेंस थी, तो स्नेहा पुरानी सखी सिमरन से मिलबैठ बातें करने का बहाना बना वहीं होमस्टे में रुक गई. क्योंकि सिमरन का अतीत जानने की उस को भी उत्सुकता थी.

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उधर पुडुचेरी के सूर्यास्त की लालिमा सदैव ही सिमरन को उदास और एकाकी करती आई है. आज वह अपने कमरे में बैठ चाह कर भी अपनी इस अवसाद भरी सोच से बाहर नहीं निकल पा रही थी.

स्नेहा ने उसे अतीत के गहरे अंधेरे कुएं में जो धकेल दिया था. तभी स्नेहा ने हौले से दरवाजा थपथाया. अपने व्यथित मन को सहेज सिमरन ने प्रोफेशनल होस्ट और दोस्त की इमेज पहन ली.

स्नेहा ने कमरे में इधरउधर झांकते हुए पूछा, “पैट्रिक कहां है?”

सिमरन ने फीकी मुसकान के साथ कहा कि वह यहां अपनी बेटी के साथ अकेली ही रहती है और यह होमस्टे उस का ही है.

आगे पढ़ें- स्नेहा यह सुन हक्कीबक्की रह गई और..

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