लेखक- शोभा बंसल
फिर कौफी पीते हुए थोड़ा सहज होने पर, अपनी पुरानी सखी स्नेहा का यों अपनापन देख सिमरन ने खुदबखुद अपना अतीत उस के सामने उधेड़ना शुरू कर दिया.
“स्नेहा, मेरा जीवन तो लंबे संघर्षों के कहीं कोरे, कहीं फीके, कहीं टेसू के लाल तो कहीं पीले रंगों का पुलिंदा है. पर, पता नहीं कैसे हिम्मत आई और मैं ने अपने को चकाचौंध की दुनिया में चट्टान से अडिग पाया. इसी दृढ़ता ने मुझे मुश्किलों का सामना कर निरंतर आगे बढ़ने को प्रेरित किया और मैं ने बिना किसी गिलाशिकवा के सोचसमझ कर पैट्रिक से अलग होने का सही निर्णय लिया था.
“मैं तुम से क्या छुपाऊं? क्या बताऊं? बस इतना ही कहना चाहती हूं कि जब हम रिलेशनशिप में होते हैं, तो केवल उसी के बारे में सोचते हैं. एक फियर में रहते हैं कि कोई उस प्यार को छीन न ले. शायद सच.
“स्नेहा, इसीलिए तब तुम्हारा पैट्रिक के लिए क्रश देख मैं भी तो जीलस और इनसिक्योर हो गई थी.”
स्नेहा यह सुन हक्कीबक्की रह गई और एंबैरेस्ड हो कर बोली, “छोड़ो वह बात. तब तो उम्र ही ऐसी होती है…
“हां, तुम्हारे पैट्रिक के साथ भागने की खबर जब मेरे मम्मीपापा के पास पहुंची, तो उन्होंने मुझे होस्टल से वापस बुला लिया और मेरी आननफानन में डा. राजीव से शादी भी करवा दी.”
फिर क्रश वाली झेंप मिटाने के लिए और अपनी आज की साख बनाए रखने के लिए स्नेहा ने आगे जोड़ा, “डाक्टर साहब देखने में तो सख्तमिजाज लगते हैं, पर इन का दिल स्नेह और प्यार से लबालब भरा है. तभी तो मैं शादी के बाद अपने पीएचडी करने का सपना पूरा कर पाई.”
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अपनी आगे की पढ़ाई न कर पाने की एक चुभन भरी टीस सिमरन के दिल में उठी. उस का भी तो पीएचडी करने का और कुछ बनने का सपना था. क्या से क्या हो गया…? पर, फिर अपने चेहरे पर उस ने मुसकान कायम रख इस चुभन को तत्परता से छुपा लिया.
उधर स्नेहा को पैट्रिक और सिमरन के ब्रेकअप के बारे में सुन कर बहुत दुख पहुंचा. उस ने कहा, “तुम पर तो तकलीफों का पहाड़ टूट पड़ा होगा…? कैसे किया मैनेज अकेले तब…?”
यह सुन कर सिमरन फिंगर क्रास करते हुए बोली, “नहीं… नहीं, पैट्रिक को दोष मत दो. सब वक्त की बात है. ब्रेकअप हुआ है हमारा. फिर भी बद्दुआ नहीं करूंगी उस के लिए. इस ब्रेकअप ने मेरे बहकते कदमों को नई दिशा दी है. मेरे वजूद को एक नई पहचान दी है. इस में कुछ तो जरूर पैट्रिक का योगदान रहा होगा.”
सिमरन ने टौपिक बदलते हुए कहना शुरू किया. उन दिनों कालेज लाइफ में तब की मुंबई हमारे लिए हौलीवुड जैसी थी. पर यह दिखने में भी नहीं, सच में बड़ी ही मायावी है. हम दोनों को ही जिंदगी का बहुत बड़ा फलसफा सिखा गई यह मुंबई.
जिस प्रोड्यूसर, डायरैक्टर ने इंटर कालेज कल्चर फेस्टिवल में चीफ गेस्ट बन हमारी ऐक्टिंग पर खुश हो, अपना विजिटिंग कार्ड दिया, हमें अपनी अगली फिल्म में काम देने का वादा किया था, उसे ही सच्चा मान हम घरपरिवार की इज्जत को दरकिनार कर अपने सपनों की दुनिया को यथार्थ में अनुभव करने के लिए हाथ में जो थोड़ाबहुत पैसा, गहना था, उसे ले कर मुंबई भाग आए. पर चार दिनों में ही यहां की असलियत सामने आ गई.
उस प्रोड्यूसर, डायरैक्टर ने तो केवल उस दिन वाहवाही लूटने और मीडिया में अपना नाम कमाने के लिए हमें वह लालच दिया था. वह क्या हमारे फाइनल्स होने तक हम दोनों का इंतजार करता? उस के दरबान ने तो हम दोनों को गेट का रास्ता दिखा दिया. अच्छेभले खातेपीते घर के लोग सड़क पर आ गए और रोटी के लिए मोहताज हो गए.
जीवनयापन के लिए सिमरन ने आसपास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया. उधर पैट्रिक फिल्मों में काम की तलाश में सुबह निकलता और देर रात तक भटकता रहता.
फिर एक दिन मेरी हेयर ड्रेसर पड़ोसन ने मुझे एक अधेड़ उम्र की बुढ़ाती नायिका की कंपेनियन के रूप में नौकरी दिलवा दी. मुझे तो द्रोपदी का सरेंधेरी रूप याद आ गया. इस नायिका के यहां पुरुषों का आना मना था. केवल लेडीज ही काम कर सकती थी. मुझे सुबह 11 बजे से ले कर शाम के 7 बजे तक उस के साथ साए की तरह रहना था. क्योंकि अब बढ़ती उम्र की वजह से न तो उस को फिल्मी दुनिया में काम मिल रहा था और न ही इज्जत. न ही उस का कोई नातेरिश्तेदार था और न ही कोई दोस्त. वह बेइंतिहा अकेली थी. पैसा भी उस के अकेलेपन को भर नहीं पा रहा था… सो, मुझे भी लगा कि कोई डर नहीं.
इस नौकरी को मैं ने और उस ने भी मुझे हाथोंहाथ लिया. मुझे देख उस के उदास चेहरे पर अजीब सी चमक आ गई और जब उस ने तीखी निगाहों से मेरे बदन पर एक गहरी निगाह डाली, तो एकबारगी मेरी रूह कांप उठी कि कहीं यह बुढ़िया कोई लुकाछिपी वाला धंधा तो नहीं चलाती. शायद वह मेरी पेशानी पर पड़े चिंता व तनाव के बादलों को पहचान गई और मुझे अपने पास बुला कर जोर से भींच लिया और प्यार से बोली, “लाडो रानी डरो नहीं… तुम तो मेरी बेटी समान हो. मेरा भी अगर परिवार होता तो तुम्हारी ही हमउम्र मेरी बेटी या बहू होती.”
फिर उस बुढ़िया ने मुझ से मेरे स्टेटस के बारे में पूछा. मैं भोलीभाली… मैं ने सीधा ही बोल दिया, “अभी शादी नहीं की, पर इकट्ठे रहते हैं. थोड़ा सेटल हो जाएंगे, तो शादी कर घर पर बसा लेंगे.”
यह सुनते ही उस ने मोहममता से सहानुभूति दिखाते हुए मुझे 3,500 रुपए एडवांस में दे दिए और उस रोज से ही अपने पास काम पर रख लिया. उस के साथ कुछ दिन बड़े मजे से कटे. ताश खेलो, गपशप करो, खाना खाओ, घूमोफिरो, उस की बातें सुनो. इसी बीच मैं उसे दवाई, खानापीना भी देती. कभीकभी वह बच्चों की तरह रूठ जाती, तो उसे अपने हाथों से खाना खिलाती.
एक दिन वह जिद करने लगी. बाजार चलो, कुछ वेस्टर्न ड्रेस लानी है, क्योंकि मैं सलवारकमीज में बड़ी उम्र की लगती थी. मैं यहां हीरोइन बनने आई थी, मां का रोल करने के लिए नहीं. घर पर ही उस ने ब्यूटीशियन को बुलवा कर अपनी निगरानी में मेरी बौडी पौलिशिंग करवाई.
सच में स्नेहा, मैं तो शर्म से मरी जा रही थी और वह बुढ़िया मेरी शर्म का मजा ले रही थी. फिर जब उस ने मुझे बालों को छोटा कटवाने को कहा, तो मैं ने सख्ती से मना कर दिया और उठ खड़ी हुई तो वह तुरंत राजी हो गई.
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अगले दिन उस ने मुझे उस की दिलवाई वेस्टर्न ड्रेस पहनने का आग्रह किया. उस दिन घर में हम दोनों ही थे और कोई नहीं. मैं तो शीशे में अपना ही रूप देख फिल्मी दुनिया में नायिका के रूप में विचरने के ख्वाब देखने लगी. उस ने मुझे अपने पास बिठा लिया और मेरी जांघों पर हाथ फेरते हुए मेरे रूपयौवन की तारीफ की. लेकिन मुझे उस का यों टच करना पसंद नहीं आया.
फिर एक दिन मेरी बैकलेस ड्रेस से पीठ पर हाथ फेरती हुई वह बोली, “यह तो पंख सी मुलायम है.”
जब तक उस के हाथ नीचे फिसलते, मैं बहाने से खड़ी हो गई. सोचा, शायद इस का बात करने का ऐसा ही ढंग होगा. फिर मेरी तरफ से कोई एतराज न देख अब उस की हिम्मत बढ़ने लगी.
एक दिन मैं कपड़े चेंज कर रही थी, तो अचानक मेरे चेंजिंग रूम का दरवाजा खुला और उस ने मुझे पीछे से जकड़ लिया. मेरे मुंह से चीख निकल पड़ी.
तो यह था इस बुढ़िया का असली रूप. लेस्बियन के बारे में केवल उड़तीउड़ती बातें सुनी थीं, पर आज तो देख भी लिया. सैक्स की भूखी वह बूढ़ी नायिका मेरा रौद्र रूप देख घबरा गई.
पहले तो उस ने भी पलटवार करते हुए मुझे लिवइन रहने के लिए लानतमलामत की. मेरे चरित्र पर लांछन मारे. मुझे टस से मस न होता देख वह समझ गई कि उस की दाल यहां नहीं गलेगी. मैं ने झटपट कपड़े पहने और कोठी का गेट खोल उस घर से भागी.
शुक्र है, उस भयानक हादसे से अपने को बचा सकी, पर शायद…
घर पहुंची तो दरवाजा अंदर से बंद था, पर कुंडी नहीं लगी थी. हां, जैसे ही दरवाजा खोल कर अंदर कदम रखा तो आंखों के आगे अंधेरा छा गया.
“किस से उस बुढ़िया की बेजा हरकत की शिकायत करूं? उस पैट्रिक से, जो खुद एक प्रोड्यूसर को खुश करने के लिए हमबिस्तर था.”
मैं अपनी चीख को होंठों में ही दबा वाशरूम में भाग गई.
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