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एकदम उछल कर वह सड़क की तरफ दौड़ पड़ी और बिना अपनी जान की परवा किए वह उस पमेरियन को बचाने का जोखिम उठा बैठी.

दायीं तरफ से आती लंबी कार ने जोर से ब्रेक लगाई. चीखती गाड़ी थमतेथमते भी उस तक आ लगी. शीशा नीचा कर उस में बैठा अफसरनुमा व्यक्ति जोर से चिल्लाया, ‘‘क्या कर रही हैं आप? बेवकूफ हैं क्या? एक कुत्ते को बचाने के लिए अपनी जान झोंक दी. मरना है तो जा कर यमुना या रेलगाड़ी चुनिए. हम लोगों को क्यों आफत में डालती हैं? आप तो निबट जाएंगी पर हम पुलिस और कोर्ट के चक्कर लगातेलगाते परेशान हो जाएंगे.’’

परंतु सुलभा जैसे कुछ सुन ही नहीं रही थी. उस ने सड़क पर से उस सफेद सुंदर पमेरियन को उठा लिया और गोद में लिए वापस बस स्टौप के उस शेड में आ बैठी. अब वह हांफ रही थी और उस कार वाले की बात को गंभीरता से ले रही थी. कह तो वह सही रहा था. एक कुत्ते के लिए उसे ऐसे अपनी जान जोखिम में नहीं डालनी चाहिए थी. पता नहीं, सड़क के इस पार की कालोनी में किस मकान का पालतू जानवर है यह. दुर्घटना जो अभी होतेहोते टली, उस के विषय में सोचते हुए उस के रोएं खड़े हो गए. सचमुच वह बालबाल बची. अगर उस कार चालक ने पूरी ताकत से ब्रेक न लगाया होते तो आज वह इस पमेरियन के साथ ही सड़क पर क्षतविक्षत लाश बनी पड़ी होती.

पमेरियन को गोद में उठाए सुलभा स्टौप के शेड के पास ही खोखे में रखी कोल्ड ड्रिंक और नमकीनों की दुकान की तरफ बढ़ गई. एक वृद्ध दुकानदार के रूप में वहां बैठा था, ‘‘आप ने जैसी बेवकूफी आज की है वैसी फिर कभी न करिएगा,’’ उस वृद्ध ने सुलभा को हिदायत दी, ‘‘इस शहर का टै्रफिक बहुत बेरहम है. वह तो कार वाला भला आदमी था जो उस ने ब्रैक लगा ली और आप बच गईं वरना जो होने जा रहा था वह बहुत बुरा होता. आप के पति और बच्चे आप को खो कर बहुत पछताते. अच्छीखासी युवती हैं आप. ऐसा कैसे कर बैठीं?’’

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उस वक्त इस नन्ही जान को बचाने के अलावा मैं और कुछ सोच ही नहीं पाई. अब उस सब को सोचती हूं तो भय से मेरे रोएं खड़े हो जाते हैं. सचमुच मैं गलत कर बैठी थी, परंतु मुझे संतोष भी है कि मैं इस कुत्ते की जान बचाने में सफल हो गई. यह सब सोच कर हंस दी सुलभा.

एक बार को उसे लगा, उस ने अद्भुत साहस का परिचय दिया है आज. वह जीवन में जोखिम भी उठा सकती है, इस का भान हो गया उसे. अच्छा भी लगा, गर्व भी महसूस हुआ. क्या वह इस जानवर को बचा कर अपने पति को बचाने की कल्पना कर रही थी? या फिर इस नन्ही जान को बचाने के पीछे अपनी कोख में न आए नन्हे बच्चे को बचाने के लिए दौड़ी थी? अवचेतन में आखिर ऐसी कौन सी बात थी, जिस ने उसे अचानक स्टौप की बैंच से उछाल कर सड़क के बीचोंबीच पहुंचा दिया?

‘‘क्या आप बता सकते हैं, बाबा कि इस पीछे वाली कालोनी में किस घर का यह पालतू कुत्ता है? सड़क के उस पार यह भटकता हुआ पहुंच गया होगा. इस पार आने की कोशिश यह इसीलिए कर रहा था कि यह इस पीछे वाली कालोनी में ही किसी घर में पला हुआ है.’’

‘‘ठीक कह रही हैं आप. मकान नंबर 301,’’ वृद्ध बोला, ‘‘एक वृद्धा इसे पाले हुए थी. पर 15-20 दिन हुए उस की मृत्यु हो गई. फिर इस कुत्ते की किसी ने सुध नहीं ली. वह अकेली रहती थी. जो लोग उस का मालमत्ता समेटने आए उन्होंने भी इस मासूम जानवर को ले जाना जरूरी नहीं समझा. यह बेचारा अकसर यों ही कालोनी में भटकता रहता है.’’

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‘‘क्यों? यह है तो बहुत प्यारा और भोलाभाला. कोई भी इसे पाल लेता,’’ सुलभा ने प्यार से उस के सिर को सहलाया, मानो अपने नए पैदा बच्चे के सिर को सहला रही हो, जिस के सिर पर रेशम जैसे नरम बाल हों.

‘‘मनहूस मान रहे हैं लोग इस मासूम जानवर को,’’ वृद्ध ने बताया, ‘‘वह वृद्धा 2 महीने पहले ही इसे कहीं से लाई थी. पहले भी उस के पास एक कुत्ता था, काले रंग का, वह उस का बहुत वफादार जानवर था. इस सड़क पर ही किसी वाहन के नीचे आ कर मर गया तो वह बहुत रोई, कलपी. जैसे उस का अपना कोई था, उस की मौत हो गई हो. आदमी जानवर को भी कितना चाहने लगता है,’’ कुछ सोच कर वह वृद्ध फिर बोला, ‘‘लोग इसे रोटियां दे देते हैं पर पाल नहीं रहे, क्योंकि यह उस दिन वृद्धा की लाश के पास बैठा रोता रहा था.’’

‘‘तब इसे मैं अपने साथ लिए जा रही हूं,’’ सुलभा ने प्यार से उस कुत्ते के रेशम बालों पर हाथ फिराया.

‘‘ले जाइए,’’ वृद्ध बोला, ‘‘इस महल्ले में इसे कोई नहीं पाल रहा. अच्छा रहेगा, इसे एक घर मिल जाएगा,’’ कुछ सोच कर वह फिर बोला, ‘‘लेकिन आप इसे बाद में किसी कारण मनहूस मान कर छोड़ न दीजिएगा. महल्ले में मैं ही अकेला ऐसा आदमी हूं जो इसे अपने घर के बरामदे में रात को सोने देता है. जब इसे कहीं रोटी नहीं मिलती तो यह मेरे घर के दरवाजे पर अपने नन्हे पंजे मारने लगता है. मैं समझ जाता हूं, यह भूखा है और इसे किसी ने आज खाने को नहीं दिया है. बरामदे में एक तरफ मैं ने छोटा सा बरतन रख रखा है, उस में पानी हर दिन भरता रहता हूं. यह उसे पीता रहता है.’’

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‘‘आप इसे मनहूस नहीं मानते?’’ सुलभा ने उस वृद्ध से पूछा.

‘‘मानता तो हूं. डर भी लगता है कि कहीं उस वृद्धा की तरह मैं भी किसी दिन अकेला ही अपने मकान में मरा न पाया जाऊं. परंतु इस की भोली और अपनत्वभरी आंखों में जो अद्भुत चमक मुझे दिखाई देती है, उस के आगे मैं मनहूसियत की बात लगभग भूल ही जाता हूं. कभीकभी सोचता हूं, न कोई जानवर मनहूस होता है, न घर, न आदमी. मनहूसियत का खयाल हमारे मन का अपना भय होता है, वह उल्लू या घुग्घू का बोलना हो या कौए का किसी के सिर पर बैठना या फिर बिल्ली का रात को किसी घर के आसपास रोना.

‘‘हम अपने भीतर के भय को ही शायद इन बहानों से बाहर निकालते हैं वरना ये जानवर स्वाभाविक रूप से अपना जीवन जीते हैं और आवाजें निकालते हैं.’’

सुलभा बोली, ‘‘कोई अगर महल्ले में इसे खोजे तो आप बता दीजिएगा. आप चाहें तो मेरा फोन नंबर अपने फोन में सेव कर लें.’’

आगे पढ़ें- फिर उस ने उस वृद्ध का नंबर पूछा और अपने…

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