पिछला भाग पढ़ने के लिए- महकी रात की रानी: भाग 1
‘‘अरे, किस खयाल में खो गई? मैं परेशान नहीं करना चाहता था तुम्हें… चलो किसी और टौपिक पर बात करते हैं बाहर चल कर,’’ कह कर सुजीत कुरसी से उठ गया और अमोली का हाथ पकड़ कर उसे भी उठा दिया. दोनों मुसकराते हुए रैस्टोरैंट से बाहर निकल आए.
उस रात अमोली को बहुत देर तक नींद नहीं आई. सोचती रही कि सुजीत सच ही तो कह रहा है, उसे भी तो कोई स्वप्निल स्पर्श गुदगुदाता रहा है, एक पिपासा दिनरात महसूस करती है वह. सुजीत के दिल पर क्या बीतती होगी? वह तो विवाहित है. अपनी पत्नी का साथ देते हुए भी एक अकेलापन… सचमुच रातें तो उस की छटपटाहट का पर्याय ही बन गई होंगी. उफ, कैसी विषम परिस्थिति है.
सुजीत और अमोली एकदूसरे के साथ अब और भी खुलने लगे थे. अमोली को सुजीत की आंखों में एक चाहत सी दिखाई देने लगी थी. पहले वह कौफी पीने के बाद अमोली को अपनी कार से मैट्रो स्टेशन तक ही छोड़ता था, पर अब अकसर घर तक छोड़ देने का हठ ले कर बैठ जाता. अमोली के बैठते ही वह कार में रोमांटिक गाने लगा कर मतवाला सा हो कर ड्राइविंग करने लगता. अमोली उसे देख मुसकराती रहती. घर आ कर उस की सुनहरी कल्पनाओं में अब सुजीत चला आता था.
उस दिन लंच में अमोली के पास सुजीत आया तो उस का चेहरा गुमसुम सा था. अमोली ने उसे अपने साथ खाना खाने को कहा तो बोला, ‘‘मन नहीं कर रहा आज कुछ खानेपीने को… पता है, एक वीक बिताना पड़ेगा तुम्हारे बिना मु झे… मुंबई में ट्रेनिंग के लिए जाना है परसों. घर पर तो अभी साली साहिबा की मेहरबानी से सब ठीक चल रहा है… लेकिन पता नहीं कैसे रह पाऊंगा बिना तुम्हारे?’’
‘‘इतना निर्भर हो जाओगे मु झ पर तो कैसे चलेगा? अच्छा है न, इस बहाने थोड़ा मु झ से दूर होना सीख जाओगे,’’ अमोली मेज पर सिर टिका कर
स्नेह से सुजीत की ओर देखते हुए बोली.
अमोली की हथेली अपनी दोनों हथेलियों के बीच छिपाते हुए वह बोला, ‘‘यों छिपी हो तुम मेरे मन में… दूरी नहीं, मैं तो बस अब सिर्फ करीबी के सपने देखता हूं… यह हाथ मेरा सहारा है और यह चेहरा… ये होंठ मेरा सपना.’’
सुजीत के प्रेम में भीगे शब्दों ने अमोली का मन भिगो दिया.
शाम को कौफी पीते हुए भी सुजीत 1 सप्ताह अमोली से दूर रहने पर उदास था. मैट्रो स्टेशन पर अमोली को छोड़ते हुए तो जैसे उस का कलेजा ही छलनी हुआ जा रहा था.
सुजीत के जाने के बाद अमोली भी उदास हो गई. सुजीत, अमोली और यह नया रिश्ता… पूरा सप्ताह अमोली की सोच बस इसी के इर्दगिर्द घूमती रही.
जब 1 सप्ताह बीत गया और सुजीत नहीं लौटा तो अमोली चिंतित हो गई. उस ने कई बार कौल किया, पर फोन नौट रिचेबल था. एक बार मिला भी तो ‘हैलो’ के बाद सुजीत की आवाज ही नहीं आई.
‘क्यों न एक बार सुजीत के घर चली जाऊं? उस की पत्नी से पता लग जाएगी वजह… और वहां सुजीत न सही उस की वह खुशबू तो रचीबसी होगी जो रोज मु झे अपने मोहमाश में जकड़े रहती है,’ सोचते हुए अमोली ने कंप्यूटर खोल सुजीत के घर का पता नोट कर लिया.
अगले दिन रविवार था. अमोली ने बुके खरीदा और कैब बुक कर सुजीत के घर पहुंच गई.
घर ढूंढ़ने में उसे कोई विशेष परेशानी नहीं हुई. बस मन में एक िझ झक अवश्य थी कि सुजीत की पत्नी और साली को वह अपना परिचय कैसे देगी.
डोरबैल बजाते ही दरवाजा खुला तो उस के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. कालेज में उस की सहेली रही नमिता सामने खड़ी थी. ‘तो नमिता की बहन है सुजीत की पत्नी वाह,’ सोचते हुए अमोली की सारी िझ झक दूर हो गई. अमोली को देख कर नमिता का मुंह भी प्रसन्नता से खुला का खुला रह गया.
‘‘अरे, मु झे क्या पता था कि सुजीत तेरे जीजू हैं. उन के साथ ही काम करती हूं मैं. उसी औफिस की लाइब्रेरी में लाइब्रेरियन हूं,’’ सोफे पर बैठते हुए अमोली बोली.
‘‘हा… हा… हा… अच्छा उन से काम है तु झे. पर जीजू नहीं यार, सुजीत मेरे मियांजी हैं… मुंबई में हैं वे इन दिनों… कल आ रहे हैं वापस. पर तूने जीजू कैसे बना दिया उन्हें मेरा?’’
‘‘वह क्या है न… बात यह है कि तू तो लगती ही नहीं शादीशुदा…’’ शब्द अमोली के गले में अटके जा रहे थे.
‘‘थैंक्स डियर,’’ नमिता खिल उठी.
‘‘इन शौर्ट्स में देख कर कौन कहेगा कि तू एक नन्हेमुन्ने की मौम है,’’ अमोली संभलते हुए बोली.
‘‘अच्छा तो सुजीत ने तु झे मिंटू के बारे में भी बता दिया… बड़ा नौटी होता जा रहा है मिंटू… सुजीत के पीछे से अकेले उसे संभालना बहुत मुश्किल हो रहा है… अभी तो सो रहा है.’’
कुछ देर बातें करने के बाद, ‘‘मैं चाय बना कर लाती हूं. आज मेड छुट्टी पर है,’’ कह कर नमिता किचन में चली गई.
अमोली का दिमाग जैसे कुछ भी सोचने की स्थिति में नहीं था.
‘नमिता… सुजीत की पत्नी… बिलकुल दुरुस्त है यह तो वह बीमारी… क्यों किया सुजीत ने ऐसा?’ वह अपने को लुटा सा महसूस कर रही थी.
नमिता से मिल कर अमोली को पुराना समय याद आ रहा था. कालेज में साथ पढ़ने वाली नमिता उस की पक्की सहेली तो नहीं थी, पर दोनों में मित्रता अवश्य थी.
‘‘क्या सोच रही है? चल आ चाय पीते हुए फिर एक बार कालेज वाली सहेलियां बन जाती हैं,’’ नमिता की खनकती आवाज सुन अमोली को ध्यान आया कि वह नमिता के ड्राइंगरूम में बैठी है.
‘‘सुजीतजी पिछले काफी समय से छुट्टी पर थे न?’’ अमोली ने अपने को संयत कर पूछा.
‘‘हां… औफिस में तो मेरी बीमारी के नाम से ली थी छुट्टियां, पर तु झ से क्या छिपाना. दरअसल, एक नई जौब औफर हुई थी उन्हें. कुछ दिन काम कर के देखना चाह रहे थे. पसंद नहीं आया वहां का माहौल, इसलिए दोबारा पुरानी जगह चले गए.’’
‘अच्छा हुआ न वरना हम कैसे मिलते,’’ अपने मुंह पर नकली मुसकान चिपकाते हुए अमोली बोली.
चाय पीते हुए नमिता से कुछ देर तक बातें करने के बाद अमोली वापस चली
ये भी पढ़ें- यह कैसा प्यार: भाग-1
आई. उस का बेचैन मन उसे कुछ भी सोचने नहीं दे रहा था. सुजीत ने उस से इतना बड़ा छल किया है, इस बात पर उसे अब भी विश्वास नहीं हो रहा था.
अगले दिन सुजीत वापस आ गया. अपने आने का समाचार उस ने अमोली को व्हाट्सऐप पर दिया, किंतु अमोली ने कोई जवाब नहीं दिया.
आगे पढ़ें- सुजीत की बात सुन अमोली चुपचाप बैठी रही, पर…