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अरुणा खुश है कि रोली की परवरिश में वह सफल हुई. रोली आधुनिकता के गंदे जाल में नहीं फंसी है. तलाक के समय भी अम्मांबाबूजी ने कितना सम   झाया था कि माफ कर दे दामादजी को अकेले बच्चों की परवरिश नहीं कर पाएगी. जीवन बड़ा मुश्किल होता है. अरुणा ने कहा था, ‘‘अम्मां सबकुछ अच्छा होगा तुम चिंता मत करो. तुम्हारे संस्कारों और दी गई शिक्षा से फैसला लेने की हिम्मत आई है मुझ में.’’

‘‘लेकिन बेटी अकेली औरत को समाज जीने नहीं देता. तू सोच रोली बड़ी होगी उस की शादी, पढ़ाई वगैरह में जहां भी तू जाएगी तेरे जीवन की कहानी पहले आ जाएगी थोड़ा तो सोच,’’ बाबूजी बोले. मगर अरुणा के निर्णय के आगे सभी चुप हो गए थे. भैयाभाभी का थोड़ा सहारा था फिर सब अपनेअपने घरसंसार में व्यस्त हो गए थे.

कल रोली 24 साल की हो जाएगी. अरुणा ने कहा कि बर्थडे सैलिब्रेट करने के लिए अपने फ्रैंड्स के साथ मिल कर पार्टी की तैयारी कर ले पर रोली इन सब से दूर रहती. रोली उस के कंधों पर    झूलते हुए बोली, ‘‘मां के साथ ही पार्टी करूंगी घर पर बाकी फ्रैंड्स को चौकलेट से मुंह मीठा करा दूंगी. सब जानते हैं मां की मु   झे लेट नाइट क्लब की पार्टियां बगैरा पसंद नहीं.’’‘‘अच्छा बाबा मानस को बुलाएगी या उसे भी नहीं? अरुणा बोली.

‘‘तुम बोलोगी तो बुला लूंगी,’’ रोली मुसकराई, ‘‘एक बात और मां मेरे पीएचडी वाले डाक्टर साहब भी आ रहे हैं.’’ ‘‘उन का क्या काम तेरे बर्थडे पर?’’ अरुणा ने पूछा.‘‘उन से ही पीएचडी कर रही हूं उन की स्टूडैंट हूं इसलिए,’’ रोली ने जवाब दिया, ‘‘डिनर हम बाहर से और्डर करेंगे या बाहर किसी होटल में करेंगे.’’‘‘अच्छा बाबा, जैसी तेरी मरजी,’’ अरुणा बोली. रोली डाक्टरेट डाक्टर अमन के मार्गदर्शन में कर रही थी.‘‘मां कहां हो?’’ अरुणा के कानों में आवाज आई. देखा तो सामने रोली खड़ी थी. ‘‘कहां खोई हुई हो? चलो कमरे में. रोली ने मां को प्यार से आदेश दिया. अरुणा अतीत में खो गई थी... वापस वर्तमान में आई और रोली के आदेश पर चुपचाप उस के पीछे चल दी उस के कमरे में. रोली का पूरा कमरा किताबों से भरा था. कहीं भी किताब पढ़तेपढ़ते रख देती थी.

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