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‘‘खूबसूरत और प्रतिभाशाली बीवी की प्रशंसा हर शौहर को करनी चाहिए,’’ सतीशजी ने मुसकराते हुए कहा तो किसी पराए मर्द की ऐसी बातें सुन कर सीमा सकुचा गई.

सतीशजी के यह कहने के बाद रमेशजी एक नजर सीमा पर डाली. सतीश सही कह रहे थे. सीमा वास्तव में खूबसूरत थी. उजला रंग, तीखे नैननक्श और सांचे में ढला हुआ बदन, वह ढलती उम्र में भी बहुत खूबसूरत लग रही थी. मगर कुछ सामाजिक दायरों का लिहाज होने के कारण वे उस समय उस की प्रशंसा तो नहीं कर सके पर वे मन ही मन सीमा की खूबसूरती के कायल जरूर हो गए. सतीशजी के बारबार कहने पर सीमा ने अपनी बनाई हुई कुछ पेंटिंग्स रमेशजी को दिखाईं.

‘‘कमाल है. आप के हाथों में तो जादू है. काफी खूबसूरत पेंटिग्स हैं. शायद मेरी वाली से भी अधिक. आप को तो फिर से पेंटिंग्स बनाना शुरू कर देना चाहिए.’’

‘‘यही तो मैं कहता हूं,’’ सतीश ने रमेशजी की बात का समर्थन करते हुए कहा.

 

हालांकि सीमा बहुत शर्मीले स्वभाव

की थी परंतु रमेशजी के खुले

और मिलनसार व्यक्तित्व को देख कर उस की ?ि?ाक थोड़ी कम हो गई थी. इस पर रमेशजी और अपने पति सतीश से मिली प्रशंसा ने उस का मनोबल भी बढ़ा दिया और उस ने मन ही मन सोचा कि मु?ो फिर से अपनी कला को प्रज्ज्वलित करना चाहिए.

वह बोली, ‘‘आप ठीक कहते हैं मु?ो फिर से पेंटिंग्स बनाना शुरू कर देना चाहिए. वैसे भी इन दिनों पारिवारिक जिम्मेदारियां कम होने के कारण अकेलापन भी अधिक महसूस होता है. पेंटिंग्स बनाने से थोड़ा वक्त भी कट जाएगा.’’

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