पिछले हफ्ते ही मिलिंद का चेन्नई वाली एडवरटाइजिंग एजेंसी की ब्रांच से नई दिल्ली वाली ब्रांच में ट्रांसफर किया गया था. बचपन से ही मिलिंद चेन्नई में अपने मामा के पास ज्यादा रहा था इसलिए उस की हिंदी भाषा पर ज्यादा पकड़ नहीं थी. दिल्ली में जब औफिस में अदिति से नजदीकियां बढ़ीं तो वह कई बार मजाक में उस की हिंदी सुधारती रहती थी.
जल्द ही दोनों की दोस्ती प्रेमपथ पर चलने लगी और दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. कंपनी में दोनों ही सेल्स डिपार्टमैंट में ऐग्जिक्यूटिव थे पर जल्द ही अदिति की रीजनल मैनेजर की पोस्ट पर प्रमोशन हो गई.
हालांकि मिलिंद को इस बात से रती भर भी फर्क नहीं पड़ा था परंतु औफिस में उस के दोस्त और अन्य स्टाफ उस की पीठ पीछे इस बात पर मुंह दबाए हंसना अपना हक सम?ाते थे और मिलिंद को समयसमय पर यह एहसास दिलवाना भूलते नहीं थे कि शादी से पहले ही अब तो अदिति से मिलने की उस की इजाजत लेनी पड़ती है तो शादी के बाद तो उसे जोरू का गुलाम बनने से कोई नहीं रोक सकता.
उन सब की ये बातें मिलिंद एक कान से सुनता था और दूसरे से निकाल देता था. दीवाली की छुट्टियों में उस ने अपने मातापिता को इंदौर से बुलवा लिया और अदिति के मातापिता से मिलवाया.
दोनों के ही मातापिता ने थोड़ी नानुकुर के बाद इस रिश्ते को मंजूरी दे दी. दिसंबर के मध्य में विवाह हुआ तो दोनों नववर्ष की संध्या हनीमून मनाने के बाद वापस लौटे.
जिंदगी रोजमर्रा के ढर्रे पर चलने लगी तो कुछ ही महीनों बाद दोनों के परिवारों में दोनों की सासू मांओं ने अदिति से चुहल करना शुरू कर दिया और कोई गुड न्यूज सुनाओ, खुशखबरी कब दे रही हो? तुम दोनों के बीच सब ठीक तो है? पहले तो अदिति ने इन बातों पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी बल्कि इन बातों को सुन कर हंस दिया करती थी पर साल बीतते न बीतते यही बातें अब तानेबाजी में बदलने लगी थीं.
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