‘‘और हां पापा बेफिक्र रहिए, मैं कभी कोई ऐसा काम नहीं करूंगी, जिस से आप की प्रतिष्ठा पर आंच आए. जौय हमेशा से मेरा सब से अच्छा दोस्त रहा है और भविष्य में भी रहेगा. उस के साथ दोस्ती के अलावा मेरा और कोई रिश्ता नहीं. मैं आप को भरोसा दिलाती हूं, इस रिश्ते में कभी किसी भी हालत में कोई और ऐंगल नहीं आने वाला,’’ यह कहते हुए वह वहां से चली गई.
बहू के मुंह से दोटूक बातें सुन कर यश के पिता का खून खौल गया. वह उसे सुनासुना कर पत्नी के सामने खूब चिल्लाए, समाज में घोर बदनामी का डर दिखाया, लेकिन चारुल अपने फैसले से टस से मस नहीं हुई. उस ने ससुर से स्पष्ट कह दिया, ‘‘अब मेरा काम ही मेरी पूजा है. आप मु?ो किसी भी हालत में अमेरिका जाने से नहीं रोक सकते.’’
सास तो शुरू से बहू के बाहर जा कर काम करने के सख्त खिलाफ थीं. इसलिए उन्होंने भी बहू के पराए मर्द के साथ विदेश जाने की बात पर खूब जहर उगला.
जो सासससुर कभी चारुल की बड़ाई करते नहीं अघाते थे, उन्होंने ही उसे आज बेटे की मौत के बाद बिना किसी दोष के कटघरे में खड़ा करने में 1 मिनट नहीं लगाया, यह सोचसोच कर चारुल का हृदय छलनी हो गया.
उस रात चारुल बेहद बेचैन रही. रातभर उसे यश के सपने आते रहे. सपने में पति को अपने इर्दगिर्द देखने के बाद नींद खुलने पर वास्तविकता का एहसास बेहद पीड़ादायी था.
भोर हो आई थी कि तभी अचानक चारुल की आंख खुली. जेहन में अभीअभी देखा गया सपना तरोताजा था. चारुल ने सपने में मृत पति को अपनी मृत्यु से पहले उसे कहे गए अल्फाज दोहराते हुए देखा ‘‘चारुल, मेरे जाने के बाद अपने ढंग से खुशीखुशी जीना. किसी के भी दवाब में मत आना. तुम्हें सुकून से जिंदगी बिताते देखना मेरी जिंदगी की आखिरी तमन्ना है. तुम्हें सुखी देखूंगा तो मेरी रूह को बहुत सुकून मिलेगा.’’