शाम को दोनों भाई-बहन अधिक और आयरा सामने वाले पार्क से खेल कर थोड़ी देर पहले घर आ गये थे. आकर बैठे ही थे कि अचानक दरवाजे की घंटी बजी तो आयरा दौड़कर दरवाजा खोलने गई और दरवाजा खोलते ही सामने किसी अजनबी युवक को देखकर चकित रह गई.
अब तक घंटी की आवाज सुनकर पीछे-पीछे उसकी मां प्रिशा बाहर निकलीं और मुसकराते हुए बेटी से बोलीं, ‘‘बेटी, यह तुम्हारी मम्मा के दोस्त हैं अवकाश अंकल, नमस्ते करो अंकल को.’’
‘‘नमस्ते मम्मा के फ्रैंड अंकल,’’ कह कर हौले से मुसकरा कर वह अपने कमरे में चली आई और बैठ कर कुछ सोचने लगी.
कुछ ही देर में उसका भाई अधिक भी घर लौट आया. अधिक आयरा से 2-3 साल बड़ा था. अधिक को देखते ही आयरा ने सवाल किया, ‘‘भैया आप मम्मा के फ्रैंड से मिले?’’
‘‘हां मिला, काफी यंग और चार्मिंग हैं. वैसे 2 दिन पहले भी आए थे. उस दिन तू कहीं गई हुई थी.’’
‘‘वह सब छोड़ो भैया, आप तो मुझे यह बताओ कि वे मम्मा के बौयफ्रैंड हुए न?’’
‘‘यह क्या कह रही है पगली. वे तो बस फ्रैंड हैं. यह बात अलग है कि आज तक मम्मा की सहेलियां ही घर आती थीं. पहली बार किसी लड़के से दोस्ती की है मम्मा ने.’’
‘‘वही तो मैं कह रही हूं कि यह बौय भी है और मम्मा का फ्रैंड भी यानी बौयफ्रैंड ही तो हुए न?’’ आयरा ने मुसकराते हुए पूछा.
‘‘ज्यादा दिमाग मत दौड़ा, अपनी पढ़ाई कर ले,’’ अधिक ने उस पर धौंस जमाते हुए कहा.
थोड़ी देर में अवकाश चला गया तो प्रिशा की सास अपने कमरे से बाहर आती हुईं थोड़ी नाराजगी भरे स्वर में बोलीं, ‘‘बहू क्या बात है, तेरा यह फ्रैंड अब अकसर घर आने लगा है?’’