कालेज में वार्षिक उत्सव की तैयारियां जोरशोर से चल रही थीं. कार्यक्रम के आयोजन का जिम्मा मेरा था. मैं वहां व्याख्याता के तौर पर कार्यरत थी. कालेज में एक छात्र था राज, बड़ा ही मेधावी, हर क्षेत्र में अव्वल. पढ़ाईलिखाई के अलावा खेलकूद और संगीत में भी विशेष रुचि थी उस की. तबला, हारमोनियम, माउथ और्गन सभी तो कितना अच्छा बजाता था वह. सुर को बखूबी समझता था. सो, मैं ने अपना कार्यभार कम करने हेतु उस से मदद मांगते हुए कहा, ‘‘राज, यदि तुम जूनियर ग्रुप को थोड़ा गाना तैयार करवा दोगे तो मेरी बड़ी मदद होगी.’’

‘‘जी मैम, जरूर सिखाऊंगा और मुझे बहुत अच्छा लगेगा. बहुत अच्छे से सिखाऊंगा.’’

‘‘मुझे पूरी उम्मीद थी कि तुम से मुझे यही जवाब मिलेगा,’’ मैं ने कहा.

वह जीजान से जुट गया था अपने काम में. उस जूनियर गु्रप में मेरी अपनी भांजी निशा भी थी. मैं उस की मौसी होते हुए भी उस की सहेली से बढ़ कर थी. वह मुझ से अपनी सारी बातें साझा किया करती थी.

एक दिन निशा मेरे घर आईर् और बोली, ‘‘मौसी, यदि आप गलत न समझें तो एक बात कहूं?’’

मैं ने कहा ‘‘हां, कहो.’’

वह कहने लगी, ‘‘मौसी, मालूम है राज और पद्मजा के बीच प्रेमप्रसंग शुरू हो गया है.’’

मैं ने कहा, ‘‘कब से चल रहा है?’’

वह कहने लगी, ‘‘जब से राज ने जूनियर गु्रप को वह गाना सिखाया तब से.’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम से किस ने कहा यह सब? क्या पद्मजा ने बताया?’’

निशा कहने लगी, ‘‘नहीं मौसी, उस ने तो नहीं बताया लेकिन अब तो उन दोनों की आंखों में ही नजर आता है, और सारे कालेज को पता है.’’

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