आज सुबह सुबह औफिस जाते हुए जैसे ही राघव की नजर कैलेंडर पर पड़ी, तो आज की तारीख देख कर एक बार उस के मन में जैसे कुछ छन्न से टूट गया. आज 9 जनवरी थी औैर आज ही उस की दुनिया पूरे 1 साल के अकेलेपन की बरसी मना रही थी.
जूही को उस के जीवन से गुजरे आज पूरा 1 साल हो गया था. जूही उस की पत्नी... हां, आज भी तो यह सामाजिक रिश्ता कायम था. कानून और समाज की नजर में जूही और राघव आज भी शादी के बंधन में बंधे थे. लेकिन सिर्फ नाम के लिए ही यह रह गया था. जूही को उस की जिंदगी से गए लंबा अरसा हो गया था. खुद को इस विवाहरूपी बंधन से आजाद करने की कोशिश न तो जूही ने की थी और न ही राघव ही इस मैटर को आगे बढ़ा पाया था.
दिमाग में उमड़ते इन पुराने दिनों के चक्रवात ने अनायास ही राघव के जिस्म को अपने शिकंजे में जकड़ लिया. राघव ने अपना लैपटौप बैग और मोबाइल उठा कर कमरे की मेज पर रखा और फिर अपनी नौकरानी शांति को 1 कप कौफी बनाने की हिदायत देता हुआ अपनी अलमारी की ओर बढ़ चला. वह जानता था कि अब उस का मन उस सुविधायुक्त कमरे में नहीं लगेगा. उस ने अलमारी खोलते हुए उस नीले कवर वाले लिफाफे को बाहर निकाला. कवर पर आज भी खूबसूरत लफ्जों में ‘राघव’ लिख हुआ था. वही कर्विंग लैटर्स वाली लिखावट जो जूही की खास पहचान है
‘‘राघव, इन खाली पन्नों पर आज अपने उन जज्बातों को उकेर कर जा रही हूं, जिन्हें शब्द देने से न जाने क्यों मेरे हाथ कांपते रहते थे. आज जब यह चिट्ठी तुम्हें मिलेगी, मैं तुम्हारी इस दुनियावी आडंबरों से भरे जीवन से बहुत दूर जा चुकी हूंगी. लेकिन चलने से पहले तुम से चंद बातें कर लेना जरूरी है. जानते हो कल रात मझे फिर वही सपना आया. तुम मुझे अपने दफ्तर की किसी पार्टी में ले गए हो. सपने में जानेपहचाने लोग हैं. परस्पर अभिवादन और बातचीत हो रही है कि अचानक सब के चेहरों पर देखते ही देखते एक भयानक हंसी आ जाती है.
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