लेखक- किशन लाल शर्मा
‘‘कौन है?’’ दरवाजे पर कई बार दस्तक देने के बाद अंदर से आवाज आई पर अब भी दरवाजा नहीं खिड़की खुली थी.
‘‘मैं, नेहा. दरवाजा खोल,’’ नेहा बोली, ‘‘कब से दरवाजा खटखटा रही हूं.’’
‘‘सौरी,’’ प्रिया नींद से जाग कर उबासी लेते हुए बोली, ‘‘तू और कहीं कमरा तलाश ले.’’
‘‘कमरा तलाश लूं,’’ नेहा ने हैरानी से प्रिया की ओर देखा व बोली, ‘‘कमरा तो तुझे तलाशना है?’’
‘‘अब मुझे नहीं, कमरा तुझे तलाशना है,’’ प्रिया बोली.
‘‘क्यों?’’ नेहा ने पूछा.
‘‘मैं ने और कर्ण ने शादी कर ली है.’’
‘‘क्या?’’ नेहा ने आश्चर्य से प्रिया को देखा. उस के माथे की बिंदी और मांग में भरा सिंदूर इस बात के गवाह थे.
‘‘पतिपत्नी के बीच तेरा क्या काम?’’ और इतना कहने के साथ ही प्रिया ने खिड़की बंद कर ली.
नेहा खड़ीखड़ी कभी खिड़की को तो कभी दरवाजे को ताकती रह गई. प्रिया औैर कर्ण के बारे में सोचतेसोचते उस के अतीत के पन्ने खुलने लगे.
नेहा और कर्ण कानपुर में इंजीनियरिंग कालेज में साथसाथ पढ़ते थे. अंतिम वर्ष की परीक्षाएं चल रही थीं, तभी कालेज कैंपस में प्लेसमैंट के लिए कई कंपनियां आईं. मुंबई की एक कंपनी में नेहा और कर्ण का सलैक्शन हो गया. परीक्षा समाप्त होने के बाद दोनों मुंबई चले गए.
मुंबई में नेहा और कर्ण ने मिल कर एक फ्लैट किराए पर ले लिया और दोनों लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगे. साथ रहतेरहते दोनों एकदूसरे के करीब आ गए.
एक रात जब कर्ण ने नेहा का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा तो वह चौंकते हुए बोली, ‘कर्ण, क्या कर रहे हो?’
‘प्यार... लव...’