Hindi Love Stories : आज निकिता लाइट पिंक कलर के वनपीस में कमाल की लग रही थी. टपोरी अंदाज में कहूं तो एकदम माल लग रही थी. उसे देखते ही मेरा दिल किया कि मैं एक रोमांटिक सा गाना गाऊं. वह मुसकराती हुई मेरे घर के अंदर घुसी और
मुझे आंख मारते हुए सुषमा के कमरे की तरफ बढ़ गई.
मेरे दिल के अरमान मचल उठे. मैं उस पर फिट बैठता कोई गाना सोचने लगा कि तब तक सुषमा उस का हाथ थामते हुए गुनगुना उठी, ‘‘बड़ी सुंदर लगती हो. बड़ी अच्छी दिखती हो…’’
निकिता ने भी तुरंत गाने की लाइनें पूरी कीं, ‘‘कहते रहो, कहते रहो अच्छा लगता है. जीवन का हर सपना अब सच्चा लगता है…’’
मुझे लगा जैसे मेरे अरमानों की जलती आग पर किसी ने ठंडे पानी की बौछार कर दी हो और मैं अपने मायूस हो चुके मासूम दिल को संभालने की नाकाम कोशिश कर रहा हूं.
दरअसल, निकिता मेरी दोस्त है. दोस्त नहीं बल्कि प्रेमिका है ऐसा वह खुद कई बार कह चुकी है और वह भी मेरी पत्नी सुषमा के आगे. मगर मैं यह देख कर दंग रह जाता हूं कि सुषमा को निकिता से कभी कोई जलन नहीं हुई. उलटा निकिता मुझ से कहीं ज्यादा सुषमा से क्लोज हो चुकी थी यानी हम तीनों का रिश्ता एक तरह का लव ट्राइऐंगल बन गया था जहां एक कोने में मचलते दिल को लिए मैं खड़ा हूं, दूसरे कोने में मेरी बीवी सुषमा और बीच में है हम दोनों की डार्लिंग निकिता. अब आप ही कहिए यह भी भला कोई लव ऐंगल हुआ?
शुरूशुरू में जब निकिता को मैं ने औफिस में देखा था तो एकदम फिदा हो गया था. उस का अपने घुंघराले बालों में बारबार हाथ फेरते हुए लटों को सुलझना, हर समय मुसकराते हुए बातें करना, बड़ीबड़ी आंखों से मस्ती भरे इशारे करना, बेबाक अंदाज से मिलना सबकुछ बहुत अच्छा लगता था.
1-2 मुलाकातों में ही हम काफी फ्रैंडली हो गए थे. उस वक्त मैं ने उसे यह नहीं बताया था कि मैं शादीशुदा हूं. मैं यह बात छिपा कर उस के करीब जाने की कोशिश में था. हमारी वाइब्स मिलती थीं इसलिए बहुत जल्दी वह मेरे साथ बाहर निकलने लगी. हम साथ में मूवी देखने जाते, घूमतेफिरते, बाहर खाना खाते. मेरे लिए वह मेरी प्रेमिका बन गई थी मगर उस के लिए मैं क्या था आज भी सम?ा नहीं आता. मैं अकसर उस से फ्लर्ट करता था. वैसे इस काम में वह खुद मुझ से आगे थी. जानेअनजाने वह अकसर मु?ो हिंट देती कि वह भी मुझे चाहने लगी है.
उस दिन शाम में वह मेरे कैबिन में आई थी. हाथों में एक गुलाब का फूल और बड़ा सा गिफ्ट पैक लिए. मैं ने उस की तरफ देखा तो मुसकराते हुए उस ने मुझे गुलाब का फूल दिया. मेरा दिल खुशी से बागबाग हो उठा. मैं खयाली पुलाव बनाने लगा कि लगता है यह मुझे वाकई प्यार करने लगी है. मैं सोचने लगा कि क्या इसे सुषमा के बारे में बता दूं या नहीं? क्या शादीशुदा होने की बात सुन कर निकिता मुझ से दूर हो जाएगी?
मैं अभी सोच ही रहा था कि उस ने मुझे गले लगाते हुए कहा, ‘‘हैप्पी मैरिज ऐनिवर्सरी माई लव.’’
मेरे दिलोदिमाग में एक धमाका सा हुआ. एक तरफ माई लव सुन कर दिल की कलियां खिलीं तो वहीं मैरिज ऐनिवर्सरी सुन कर समझ आया कि इसे तो सब पता है.
मैं बस इतना ही कह सका, ‘‘तुम्हें कैसे पता?’’
‘‘पता तो हो ही जाता है मेरी जान. तुम बस यह बताओ कि पार्टी कब दे रहे हो? घर में या बाहर? सुषमा के साथ या उस के बिना?’’
‘‘तो तुम सुषमा से भी मिल चुकी हो?’’ मैं ने चौंकते हुए पूछा.
‘‘अरे नहीं. तुम ने मिलाया कहां अब तक?’’ वह हंसती हुई बोली.
‘‘ओके फिर आज रात घर पर पार्टी.’’
मैं पूरा वाक्य भी नहीं बोल पाया था. शब्द गले में अटक कर रह गए थे. कहां तो मैं प्यारव्यार के सपने देख रहा था और कहां उस ने मुझे हकीकत के फर्श पर ला पटका जहां एक अदद पत्नी मेरा इंतजार कर रही थी. निकिता गिफ्ट पैक थमा कर चली गई और मैं एक वफादार पति की तरह सुषमा को फोन करने लगा. सुबह मैं सुषमा को विश करना जो भूल गया था.
सुषमा से मैं ने निकिता के बारे में बता दिया कि वह शाम में घर आ रही है. सुषमा ने पार्टी की तैयारी कर ली. शाम में निकिता मेरे साथ ही मेरे घर आ गई. यहीं से सुषमा और निकिता की दोस्ती की शुरुआत हुई थी. आज इस दोस्ती ने अपने पर काफी ज्यादा फैला लिए थे.
मैं जब भी सुषमा से निकिता की बात करता तो वह उस की तारीफ करते न थकती. पहले मु?ो लगता था कि सुषमा को मेरी और निकिता की दोस्ती को ले कर मन में सवाल होंगे या शक का कीड़ा कुलबुलाएगा मगर ऐसा कुछ नहीं था. उलटा वह तो कई दफा मजाक के अंदाज में मुझे और निकिता को ले कर बातें भी बनाया करती थी. मसलन, एक बार एक औफिस प्रोजैक्ट के सिलसिले में मुझे और निकिता को इलाहाबाद जाना पड़ा था. हम दोनों कैब से गए और वहां एक दिन रुके भी थे. वैसे तो हमारे लिए 2 अलगअलग कमरों की व्यवस्था की गई थी मगर उस बात को ले कर बाद में सुषमा ने कई दफा मस्ती में कहा कि क्या पता तुम दोनों उस रात एक ही कमरे में रहे होंगे. कोई और तो वहां था नहीं.. जरूर बात आगे बढ़ी होगी और बढ़नी भी चाहिए. एक खूबसूरत लड़की और एक नौजवान दिल एकसाथ होंगे तो…
वह बात आधी छोड़ कर जाने क्या जताना चाहती थी. मगर उस के चेहरे पर कभी शिकवा नहीं होता था बल्कि प्यार होता था मेरे लिए भी और निकिता के लिए भी.
कई दफा निकिता भी सुषमा के आगे मुझ से फ्लर्ट करने लगती. कभी कहती कि बड़े हौट लग रहे हो. कभी कहती आज रात यहीं तुम्हारे पास रुक जाती हूं तो कभी मेरे बनाए खाने की तारीफ करती हुई कहती कि बस तुम मिल जाओ मुझे पति परमेश्वर के रूप में तो मजा आ जाए. मैं दोनों के बीच बस मुस्कुरा कर रह जाता.
एक दिन तो हद ही हो गई. होली की वजह से 3-4 दिनों की छुट्टी थी. मैं देर तक सोता रहा. फिर सो कर उठा तो देखा सुषमा कहीं बाहर गई हुई थी. मैं घर पर बोर हो रहा था. निकिता हमारे घर से ज्यादा दूर नहीं रहती. मैं ने सोच क्यों न उसे ही बुला लूं. कुछ हंसीमजाक होगा तो दिल लग जाएगा.
मैं ने उसे कौल की, ‘‘क्या कर रही हो डियर? आज सुषमा नहीं है घर में. तुम आ जाओ बातें करेंगे कुछ इधरउधर की,’’ मेरे दिल में फुलझाडि़यां फूट रही थीं.
वह हंसती हुई बोली, ‘‘मैं तो अभी बहुत व्यस्त हूं. पहले गोलगप्पे और फिर छोलेकुलचे खाने हैं. वैसे आप की मैडम के साथ ही हूं. हम दोनों फुल ऐंजौय कर रहे हैं. अभी शाम तक शौपिंगवौपिंग कर के ही लौटेंगे.’’
‘‘अच्छा मगर तुम लोग हो कहां?’’ मैं ने मन मसोस कर पूछा.
‘‘अरे यार हम सिटी मौल में हैं. मन नहीं लग रहा तो आ जाओ तुम भी. तीनों मिल कर…’’
‘‘नहींनहीं तुम दोनों ऐंजौय करो. मुझे कहीं जाना है,’’ कह कर मैं ने फोन रख दिया और अपना सा मुंह बना कर सोचने लगा कि ये दोनों तो अब एकदूसरे के साथ इतनी क्लोज हो गई हैं कि मैं ही बीच में से निकल गया.
सुषमा भी कम नहीं थी. एक बार 3 छुट्टियां एकसाथ पड़ीं तो हम ने ऋ षिकेश घूमने जाने का प्लान बनाया.
मैं अभी टिकट्स बुक करने की सोच ही रहा था कि सुषमा ने टोका, ‘‘क्या हम दोनों के ही टिकट बुक कर रहे हो?’’
‘‘हां और क्या? तुम्हें किसी और को भी लेना है साथ में?’’ मैं ने पूछा.
वह मुसकराती हुई बोली, ‘‘निकिता को ले लेते हैं.’’
‘‘क्या? मगर उसे क्यों साथ ले जाना
चाहती हो?’’
‘‘इस में हरज ही क्या है? मजेदार लड़की है. मन लगेगा वरना तुम्हारे साथ तो मैं बोर ही हो जाती हूं.’’
‘‘फिर ऐसा करो, तुम उसी के साथ चली जाओ,’’ मैं ने चिढ़ कर कहा.
‘‘अरे तुम्हें समस्या क्या है? तुम्हारी भी
तो दोस्त है न और वह भी खास वाली. मुझे तो लगा था तुम्हें खुशी होगी मगर तुम तो नाराज
हो गए.’’
‘‘मेरी खास दोस्त है या नहीं वह मैं नहीं जानता. मगर तुम्हारी कुछ ज्यादा ही खास दोस्त बन चुकी है यह जरूर नजर आता है,’’ मैं ने अपने मन की भड़ास निकालते हुए कहा.
‘‘हां बिलकुल. मुझे इनकार नहीं. अगर वह लड़का होती तो पक्का मेरी डार्लिंग होती,’’ कह कर वह हंस पड़ी.
मुझे समझ नहीं आया कि क्या सुषमा मुझे ताने मार रही है या वाकई वह उसे इतना
पसंद करने लगी है. शायद मुझे यह जलन भी होने लगी थी कि सुषमा और निकिता मेरे लिए आपस में लड़ने के बजाय एकदूसरे की डार्लिंग बन चुकी थीं.
चलिए निकिता की सुषमा से नजदीकियां तो मैं फिर भी सह सकता था मगर आजकल
कोई और भी निकिता पर लाइन मारने लगा था और यह मुझे बरदाश्त नहीं था.
दरअसल, एक नया लड़का तन्मय औफिस में आया था. वह शादीशुदा था मगर उसे निकिता में ज्यादा ही इंटरैस्ट डैवलप होने लगा था. तन्मय वैसे हम दोनों का सीनियर बन कर आया था मगर मेरी
नजर में वह मेरा जूनियर था. एक तो उस की उम्र मु?ा से कम थी, उस पर उस से ज्यादा ऐक्सपीरियंस मेरे पास था. वह बौस के किसी दोस्त का लड़का था इसलिए औफिस में उसे थोड़ी सीनियर पोस्ट दी गई थी.
1-2 दिन मैं ने देखा कि वह निकिता के ज्यादा ही करीब हो कर हंसीमजाक की बातें कर रहा था. सिर्फ निकिता ही नहीं उसे मैं ने औफिस की 1-2 और लड़कियों के साथ भी ज्यादा ही घुलमिल कर बातें करते देखा था.
मैं ने अपना गुस्सा निकिता के आगे निकालते हुए कहा, ‘‘यह तन्मय मुझे सही लड़का नहीं लगता. आते ही सारी लड़कियों से फ्लर्ट करने में लगा है जबकि शादीशुदा है वह.’’
‘‘अरे बाबा मैं सब जानती हूं. तुम क्यों टैंशन ले रहे हो?’’ निकिता ने जवाब दिया.
‘‘बस तुम्हें आगाह कर रहा था. उस के जाल में फंसना नहीं.’’
‘‘अच्छा तो मैं क्या कोई मछली हूं कि वह जाल फेंकेगा और मैं फंस जाऊंगी?’’
‘‘नहीं ऐसी बात नहीं. बस तुम्हें ले कर थोड़ा सैंसिटिव हूं. तुम्हें ?ांसे में ले कर चोट न पहुंचाए इसलिए…’’
मेरी बात बीच में काटते हुए वह बोली, ‘‘अरे यार मुझे उस से कैसे निबटना है, कब
सीमा दिखानी है, क्या बात करनी है, कैसे
हैंडल करना है यह सब मु?ा पर छोड़ दो. मेरी जिंदगी है न,’’ कह कर उस ने मुझे कुछ अजीब नजरों से देखा.
मैं सकपका गया, ‘‘हां बिलकुल. सौरी,’’ कह कर मैं वहां से चला आया.
दिल में देर तक बेचैनी बनी रही. ऐसा लगा जैसे कुछ टूट गया है. शायद मैं ज्यादा ही सोच रहा था. वह तो केवल एक अच्छी दोस्त है. सच में ऐसा ही तो था. वैसे भी आज शायद निकिता ने मुझे मेरी सीमा दिखा दी थी. सही भी है उस की जिंदगी में दखल देने का हक भला मुझे कहां था.