‘‘अनु, अब तुम उन दोनों के साथ मिलनाजुलना और हंसहंस कर बातें करना छोड़ दो.’’
‘‘क्यों, तुम्हें जलन हो रही है? मैं प्यार तुम्हीं से करती हूं, इस का मतलब यह तो नहीं कि मैं बाकी लोगों से बात न करूं. इतने नैरो माइंडेड न बनो, जीत.’’
‘‘अनु, तुम खूब समझ रही हो मैं किन दोनों की बात कर रहा हूं. वे अच्छे लड़के नहीं हैं. उन की हिस्ट्री तुम्हें भी पता है न. दोनों ने मिल कर श्यामली को कैसे धोखा दिया है.’’
‘‘हां जीत, सब जानती हूं, पर मैं धोखा खाने वाली नहीं हूं. मुझे भी दूसरों को उल्लू बनाना खूब आता है.’’
‘‘मुझे भी?’’
‘‘तुम बात कहां से कहां ले आए, छोड़ो इन बातों को. अब बताओ अमेरिका जाने के बारे में क्या सोचा है तुम ने?’’
‘‘मैं चाह कर भी अभी नहीं जा सकता हूं, तुम मां की हालत देख तो रही हो.’’
विश्वजीत को अनुभा जीत कहती थी और जीत उसे अनु कहता था. जीत के पिता का देहांत कुछ वर्ष पहले हो गया था. इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान ही जीत की मां भी गंभीर रूप से बीमार पड़ीं. लकवे से आंशिक रूप से ठीक तो हो गईं, पर उन की बोली में लड़खड़ाहट आ गई थी और चलने में काफी दिक्कत होती थी. जीत और अनुभा दोनों ही अमेरिका जाने की सोच रहे थे पर अब मां की बीमारी के चलते जीत ने अपना इरादा छोड़ दिया था. अनुभा अमेरिका जा कर वहीं सैटल होने पर दृढ़ थी. अनुभा के पापा कामता बाबू भी यही चाहते थे. उन की इच्छा थी कि बेटी के अमेरिका जाने के पहले उस की शादी कर दें या कम से कम सगाई तो जरूर कर दें. उन्हें अनुभा और जीत के बारे में पता था.
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