लेखिका- सावित्री रानी
सभी दोस्त वापस होस्टल चले गए.
सुबह जब पीयूष की आंख खुली तो देखा कि तपेश भी वहीं बराबर वाले बैड पर सो रहा था.
‘‘अरे, तू यहां क्या कर रहा है? तु झे तो रात भर पढ़ना था न?’’ पीयूष ने हैरानी से पूछा
‘‘अरे नहीं यार. सोना ही था, तो यहीं सो गया.’’
तभी कंपाउंडर और डाक्टर दोनों साथ में दाखिल हुए. कंपाउंडर डाक्टर से बोला, ‘‘सौरी डाक्टर साहब रात को नींद लग गई तो
हर घंटे पर बुखार चैक नहीं कर सका, लेकिन मैं ने इंजैक्शन दे दिया था.’’
डाक्टर ने पीयूष के बैड साइड से चार्ट उठाते हुए कहा, ‘‘लेकिन चार्ट में तो हर घंटे की रीडिंग है.’’
इस के साथ ही पीयूष की निगाहें तपेश की ओर घूमीं तो वह आंखें मिचका कर मुसकरा दिया.
थोड़ी देर में पीयूष की मां का फोन आया, ‘‘बेटा अब कैसी तबीयत है?’’
‘‘ठीक है मां.’’
‘‘तपेश तेरे पास ही था न?’’
‘‘हां मां, लेकिन आप को कैसे पता?’’
‘‘मैं ने ही उसे तेरा ध्यान रखने को बोला था, जब वह हमारे घर आया था. बहुत प्यारा लड़का है. आज तु झे भी बोल रही हूं. हमेशा उस का ध्यान रखना. प्रौब्लम में उसे कभी अकेला मत छोड़ना.’’
‘‘कभी नहीं मां.’’
वक्त की रफ्तार यूनिवर्सिटी में कुछ ज्यादा ही तेज होती है. 4 साल पलक झपकते ही बीत गये. कालेज के इन 4 सालों ने सभी दोस्तों को इंजीनियरिंग की डिगरी दे कर उन के पंखों को नई उड़ान के लिए मजबूत कर दिया था और उन्हें एक नए आकाश पर अपने नाम लिखने के लिए खुला छोड़ दिया था.
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पीयूष और रिया की खूबसूरत जोड़ी के प्यार का पौधा भी अब तक एक विशाल वृक्ष का रूप ले चुका था.
फिर हरकोई अपने कैरियर के चलते कहांकहां जा बसा, हिसाब रखना भी मुश्किल हो गया. इन की उड़ान देश के हर शहर से ले कर विदेशों तक उड़ चली थी.
धीरेधीरे सब की शादियां होने लगीं. तपेश की शादी एक मध्यवर्गीय परिवार की पढ़ीलिखी लड़की शालू से हो गई. जाहिर है अरेंज्ड मैरिज थी, लेकिन दोनों की अच्छी निभ रही थी. 1 साल बाद शालू ने बेटे को जन्म दिया तो ऐसा लगा कि घर खुशियों से भर गया.
उधर पीयूष और रिया दोनों को भी अच्छी नौकरी मिल गई थीं. लेकिन वे दोनों अभी शादी नहीं करना चाहते थे. कुछ और दिन अपनी बैचलर लाइफ ऐंजौय करना चाहते थे. कभीकभी तपेश को लगता कि पीयूष यहां भी बाजी मार गया. जहां वह घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां निभा रहा था वहीं पीयूष अभी भी बैचलर लाइफ की मस्ती ले रहा था.
लेकिन अपने प्यारे से बेटे को गोद में ले कर जब तपेश उसे प्यार करता तो उस के सामने दुनिया की हर नेमत छोटी लगती थी. जब उस ने अपना पहला शब्द ‘पप्पा’ बोला तो तपेश उसे गोद में उठा कर खुशी से झूम उठा और जैसे खुद से ही बोला कि इस एक पल पर सारी मस्तियां वारी जा सकती हैं.
अगले साल बड़ी धूमधाम से पीयूष और रिया की भी शादी हो गई. शादी के कुछ दिन बाद ही पीयूष को किसी असाइनमैंट के लिए विदेश जाना पड़ा. फिर पता नहीं क्यों और कैसे, लेकिन वापस आते ही रिया ने उस के सामने तलाक की मांग रख दी.
पीयूष का प्यार आज तक उस की किसी मांग को नकार नहीं सका था लिहाजा, इस मांग को भी उस की खुशी मान कर न नहीं कर पाया. म्युचुअल कंसर्न से तलाक हो गया. यह शादी उतने दिन भी नहीं चली जितने दिन उस की तैयारियां चली थीं. गलती किस की थी या क्या थी, इन सब बातों की फैसले के बाद कोई अहमियत नहीं रह जाती. कुछ दिन बाद उड़ती सी खबर सुनी कि रिया ने उस से शादी कर ली, जिस के लिए उस ने पीयूष को छोड़ा था.
इधर तपेश की पत्नी शालू ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया. परिवार में इस इजाफे के साथ ही उन का परिवार भी पूरा हो गया और हर अरमान भी.
उधर पीयूष का तलाक हुए काफी वक्त बीत चुका था. सभी के सम झानेबु झाने के बाद भी फिर उस का मन किसी की ओर नहीं झुका. रिया से टूटे हुए रिश्ते ने उस को इस कद्र तोड़ दिया कि फिर वह किसी से जुड़ ही नहीं सका.
अब तपेश को साफ दिखाई दे रहा था कि पीयूष के नंबर कहां कटे हैं. अब वह सौ नंबर वाली फिलौसफी उसे पूरी तरह कन्विनसिंग लग रही थी.
पीयूष की उम्र पैसा कमाने और दोस्तों से मिलनेमिलाने में ही बीत रही थी. उस का मिलनसार व्यवहार और गाने का शौक हर महफिल में जान डाल देता था. अपने हर दोस्त के घर उस का स्वागत प्यार से होता था. हर परिवार में उस के दिए गए तोहफे न सिर्फ यूजर मैनुअल के साथ आते, बल्कि इस इंस्ट्रक्शन के साथ भी आते कि घर में उन को कहां रखना है.
अपने कलात्मक सु झाव और मस्तमौला अंदाज के कारण वह दोस्तों की पत्नियों के बीच भी उतना ही पौपुलर था जितना दोस्तों के बीच. दुनिया के न जाने कितने देशों में अपने काम के सिलसिले में पीयूष का जाना हुआ, लेकिन हर बार अपने नीड़ में पंछी अकेला ही लौटा.
अब 45 साल की उम्र में गुरुग्राम के एक लग्जरी अपार्टमैंट में वह अकेला रह रहा था.
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सारी रात तपेश इन्हीं यादों में डूबतातैरता रहा. तभी सूरज की एक किरण ने उस के बैडरूम की खिड़की पर दस्तक दी. शालू की आंख खुली तो वह तपेश की ओर देख कर बोली, ‘‘अरे आज तो बड़ी जल्दी उठ गए.’’
‘‘नहीं, असल में मैं सोया ही नहीं,’’ कह कर उस ने शालू को पीयूष के बारे में सब बताया.
‘‘उफ, सो सैड…’’ तो चलो फिर हम अस्पताल चलते हैं.
‘‘नहीं, तुम घर पर बच्चों के पास रुको, मैं जाता हूं.’’
तपेश तैयार हो कर वक्त से कुछ पहले ही अस्पताल पहुंच गया और आईसीयू की विंडो से पीयूष को देखता रहा. डाक्टर ने उसे बताया, बात कर के उसे पता चला कि रात को करीब 1 बजे उसे अस्पताल लाया गया था. हार्टअटैक सीवियर था, लेकिन कुदरत का शुक्र है कि समय पर सहायता मिल गई. अब स्थिति काबू में है. बाकी अपडेट्स शाम को दे पाऊंगा,’’ कह कर डाक्टर जल्दी से चला गया.
तपेश पूछता ही रह गया. अरे, लेकिन डाक्टर उसे अस्पताल लाया कौन था?
तभी उस ने देखा कि एक औरत उसी डाक्टर को आवाज लगाती हुई आई और उस से पीयूष के बारे में पूछताछ करने लगी. तपेश हैरानी से उस की ओर देख रहा था. वह करीब 35-40 साल की खूबसूरत औरत थी, जो इंडियन तो नहीं थी. वह फ्रैंच एकसैंट में इंग्लिश बोल रही थी, उस से साफ जाहिर था कि वह किसी इंग्लिश स्पीकिंग देश से भी नहीं है.
पहनावे से तो वह काफी कुछ आजकल की मौडर्न औरतों जैसी ही लग रही थी, लेकिन नैननक्श से कुछकुछ अरबी लग रही थी. लेकिन उस की फ्रैंच एकसैंट में इंग्लिश सुन कर तपेश को लगा कि शायद वह लैबनान या ईजिप्ट से हो सकती है.
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