मन के दर्पण में: क्या एक-दूसरे का सहारा बन सके ललितजी और मृदुला?
व्यक्ति की भावनाएं, इच्छाएं उम्र से नहीं बंधी हैं. स्त्री को पुरुष और पुरुष को स्त्री के सान्निध्य की चाह हर उम्र में रहती है. ललितजी और मृदुला उम्र के उस मोड़ पर खड़े थे जहां उन्हें भी जरूरत थी किसी अपने की.