कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
0:00
12:24

उस पल मुझे निशा को अपने पति को छूना अच्छा नहीं लगा. सच तो यह है कि मुझे निशा ही अच्छी लगना बंद हो गई. पार्टी में मेरा उस से कई बार आमनासामना हुआ, पर मैं उस से सहज और सामान्य हो कर बातें नहीं कर पाई.

निशा को ले कर मेरे मन में पैदा हुआ मैल अमित की नजरों से ज्यादा दिन नहीं छिपा रहा. इस विषय पर एक शाम उन्होंने चर्चा छेड़ी, तो मैं ने कई दिनों से अपने मन में इकट्ठा हो रहे गुस्से व शिकायतों का जहर उगल दिया.

‘‘शादी हो जाने के बाद समझदार इनसान अपनी पुरानी सहेलियों से किनारा कर लेते हैं. अब आफिस में अलग से इश्क लड़ाने का चक्कर तुम खत्म करो, नहीं तो ठीक नहीं होगा,’’ मुझे बहुत गुस्सा आ गया था.

‘‘तुम मुझ पर शक कर रही हो,’’ अमित ने जबरदस्त सदमा लगने का नाटक किया.

‘‘मैं ही नहीं, इस बात का सच तुम्हारा पूरा आफिस जानता है.’’

‘‘प्रिया, तुम लोगों की बकवास पर ध्यान दे कर अपना और मेरा दिमाग खराब मत करो.’’

‘‘मेरे मन की सुखशांति के लिए तुम्हें निशा से किसी भी तरह का संबंध नहीं

रखना होगा.’’

‘‘तुम्हारे आधारहीन शक के कारण मैं अपने ढंग से जीने की अपनी स्वतंत्रता को खोने के लिए तैयार नहीं हूं.’’

‘‘निशा का आज से मेरे घर में घुसना बंद है और अगर तुम ने कभी उस के फ्लैट में कदम रखा, तो मैं यहां नहीं रहूंगी.’’

‘‘मुझे बेकार की धमकी मत दो, प्रिया. अगर तुम ने निशा के साथ कभी भी जरा सी बदतमीजी की तो मुझ से बुरा कोई न होगा.’’

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि तुम्हें निशा की ज्यादा और मेरी भावनाओं की चिंता कम है.’’

‘‘तुम यों आंसू बहा कर मुझे ब्लैकमेल नहीं कर सकती हो. इस विषय पर और आगे बहस नहीं होगी हमारे बीच. मैं तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा हूं.’’

‘‘मुझे अपने दिल की रानी मानते हो तो निशा से संबध तोड़ लो.’’

‘‘तुम्हारे जैसी बेवकूफ औरत से कौन मगज मारे,’’ गुस्से से आगबबूला हो कर अमित घर से बाहर चले गए.

मेरी इच्छा व भावना की कद्र करते हुए मेरे एक बार कहने पर अमित फौरन निशा से दूर हो जाएंगे, मेरी इस सोच को उन्होंने उस दिन गलत साबित किया. उन की जिंदगी में कोई दूसरी लड़की हो, यह बात मेरे लिए असहनीय थी. उन के दिल पर सिर्फ मेरा हक था. निशा के साथ संबंध समाप्त करने से इनकार कर के उन्होंने मुझे जबरदस्त झटका दिया था.

निशा का हमारे घर आना जारी रहा. मैं उस की उपस्थिति में नाराजगी भरा मौन साध लेती. उन का आपस में हंसनाबोलना असहनीय हो जाता तो सिरदर्द का बहना बना कर अपने शयनकक्ष में जा लेटती.

निशा का मेरे घर में अब स्वागत नहीं है, यह बात अपने हावभाव से स्पष्ट करने में मैं ने कोई कसर नहीं छोड़ी.

निशा पर तो मेरे इस मौन विरोध का खास प्रभाव नहीं पड़ा, पर अमित बुरी तरह से तिलमिला गए. निशा को ले कर हमारे बीच रोज लड़ाईझगड़ा होने लगा.

मुझे इस बात का सख्त अफसोस था कि इन झगड़ों से या मेरे आंसू बहा कर रोने से अमित अप्रभावित रहे. उन का अडि़यल रुख मेरी दृष्टि में उन के मन में चोर होने का सुबूत था. क्रोध और ईर्ष्या की आग में सुलगते हुए मैं रातदिन अपना खून जलाने लगी.

हमारे बीच जबरदस्त टकराव का यह खराब दौर करीब 2 महीनों तक चला. फिर अचानक मेरे मन को उदासी और निराशा के कोहरे ने घेर लिया.

मैं अपनेआप में सिमट कर जीने लगी. मशीनी अंदाज में घर का काम करती. अमित कुछ समझाने की कोशिश करते, तो मेरी समझ में कुछ न आता. तब या तो मैं थकेहारे से अंदाज में उठ कर घर के किसी अन्य हिस्से में चली जाती या मेरी आंखों से टपटप आंसू गिरने लगते. वे कभीकभी मुझे डांटते भी, पर मैं किसी भी तरह की प्रतिक्रिया दर्शाने की शक्ति अपने अंदर महसूस नहीं करती. सच तो यह है कि अमित का सान्निध्य ही मुझे अच्छा नहीं लगता.

मेरा स्वास्थ्य निरंतर गिरता देख मेरे मायके व ससुराल वाले बहुत चिंतित हो उठे. हमारे दांपत्य संबंध किसी निशा नाम की लड़की के कारण बिगड़े हुए हैं, इस तथ्य से वे पहले ही परिचित थे.

जब अमित को वे सब निशा से बिलकुल कट जाने की बात डांटफटकार के साथ समझाते तो मुझे बड़ा सुकून व सहारा मिलता.

मेरे ‘डिप्रैशन’ ने सब को हिला कर रख दिया. अमित पर निशा से दूर हो जाने के लिए जबदस्त दबाव बना. पहले की तरह वे किसी से बहस या झगड़े में तो नहीं उलझे, पर उन्होंने अपने को बेकुसूर कहना जारी रखा. निशा से वे सब संबंध समाप्त कर लेंगे, ऐसा आश्वासन भी कोई उन के मुंह से नहीं निकाल सका. उदासी के कोहरे को चीर कर यह तथ्य मेरे दिलोदिमाग में कांटे की तरह अकसर चुभता.

‘‘प्रिया को कुछ दिन के लिए हम घर ले जा रहे हैं,’’ मेरे मातापिता के इस प्रस्ताव का अमित ने एक बार भी विरोध नहीं किया.

‘‘मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा खराब वक्त कभी हमारे वैवाहिक जीवन में आएगा, प्रिया. तुम वह लड़की नहीं रहीं जिसे मैं ने हमेशा दिलोजान से ज्यादा चाहा. अपने मन में बैठे शक के बीज को जब तुम सदा के लिए जला कर राख करने को तैयार हो जाओ, तब मैं तुम्हें लेने चला आऊंगा. अपना ध्यान रखना,’’ विदा करते वक्त अमित की आंखों में मैं ने आंसू तो देखे, पर उन्होंने निशा से दूर होने का वादा मुंह से नहीं निकाला.

शादी के सिर्फ 4 महीने बाद मैं निराशा, दुखी और उदास हाल में अमित से दूर मायके रहने आ गई. मेरे घर वालों के साथसाथ जो भी मुझे से मिलने आता अमित को बुरा कहता. उन सब के सहानुभूति भरे शब्द मुझे बारबार रुलाते. यह भी सच है कि मेरी समस्या को हल करने का सार्थक सुझाव किसी के भी पास नहीं था.

अमित फोन पर मेरा हालचाल लगभग रोज ही पूछते. मैं अधिकतर खामोश रह कर उन की बातें सुनती. उन्होंने निशा के मामले में अपने को बेकुसूर कहना जारी रखा. उस से संबंध तोड़ने को वे अभी भी तैयार नहीं थे. ऐसी स्थिति में उन्हें समझाने के सारे प्रयास निरर्थक साबित होने ही थे.

मेरा डिप्रैशन धीरेधीरे दूर होने लगा. भूख खुली और नींद ठीक हुई, तो स्वास्थ्य भी सुधरा. मेरी संवेदनशीलता लौटी तो निशा को ले कर मन फिर से टैंशन का शिकार हो गया.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...